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चरणानुयोग-प्रवेशिका
१६ करता है और उपवासके समय ( सोलह पहर तक ) अपने साम्यभावसे च्युत नहीं होता है वह प्रोषध प्रतिमावाला है।
१३७. प्र०-प्रोषधोपवासव्रत और प्रोषधोपवासप्रतिमामें क्या अन्तर है? ___उ०-दूसरी प्रतिमामें प्रोषधोपवास शीलरूप अर्थात् अणुव्रतोंके रक्षकके रूपमें सहायकव्रत है, मुख्यव्रत नहीं है। किन्तु चौथी प्रतिमामें वह मुख्यत्रत हो जाता है। यही बात सामायिकव्रत और सामायिकप्रतिमाके सम्बन्धमें जाननी चाहिए।
१३८. प्र०–सचित्तत्याग प्रतिमा किसे कहते हैं ?
उ०-पहली चारों प्रतिमाओंका निर्दोष पालन करते हुए जो दयालु सचित्त अंकुर, कन्द, मूल, फल, पत्र, बोज, पानो, नमक वगैरह नहीं खाता अर्थात् सचित्त भक्षण नहीं करता वह सचित्तविरत प्रतिमावाला है।
१३९. प्र०-सचित्त किसे कहते हैं ? उ०-जोव सहित हरे पत्ते शाक वगैरहको सचित्त कहते हैं। १४०. प्र०-सचित्तद्रव्यसे पूजन करना योग्य है वा नहीं ?
उ०-पहली, दूसरी, तीसरो और चौथी प्रतिमाके धारक तो सचित्त द्रव्यसे भी पूजन कर सकते हैं किन्तु पांचवीं, छठी, सातवीं, आठवीं प्रतिमाके धारी अचित्तद्रव्यसे ही पूजन करते हैं क्योंकि इन चारोंके सचित्तका त्याग है और नौंवी, दसवीं तथा ग्यारहवीं प्रतिमाके धारी भावपूजा ही करते हैं।
१४१. प्र०-छना हुआ जल सचित्त है या अचित्त ? .
उ०-छना हुआ जल सचित्त हो है क्योंकि उसमें एकेन्द्रिय जलकायिक जोव विद्यमान हैं। ऐसा जल चतुर्थ प्रतिमा पर्यन्त हो ग्रहण करनेके योग्य है। सचित्त त्यागो गृहस्थ और मुनियोंके योग्य नहीं है। अतः सेवन करने से दो घड़ी पहले उस जलमें हरड़ या लौंगका चूर्ण आदि तीक्ष्ण वस्तू मिला देनी चाहिये या उसे आग पर तपा लेना चाहिये।
१४२. प्र०-रात्रिभुक्तिवत प्रतिमाका क्या स्वरूप है ?
उ.--जो मन, वचन, काय और कृत-कारित अनुमोदनासे दिनमें मैथुनका त्याग करता है वह छठी प्रतिमाका धारी है। अधिकतर श्रावकाचारोंमें छठी प्रतिमाका यही स्वरूप बतलाया है किन्तु स्वामी समन्तभद्रने रत्नकरण्डश्रावकाचारमें कहा है कि जो रातमें अन्न, पान (पीने योग्य वस्तु ) खाद्य ( लड्डू वगैरह ) और लेह्य ( रबड़ी वगैरह ) चारों प्रकारके आहारका त्याग करता है वह रात्रिभुक्तिवती श्रावक है।
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