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चरणानुयोग-प्रवेशिका उसी जलाशयमें डाले जिससे जल लिया हो। जुआ खेलना, मांस खाना, मदिरा पीना, वेश्या सेवन करना, शिकार खेलना, परस्त्रो सेवन करना और चोरो करना इन सात व्यसनोंका मन, वचन, काय और कृत-कारित-अनुमोदना से त्याग कर दे। जिस वस्तुको बुरा जानकर स्वयं छोड़े उसका प्रयोग दूसरोंके प्रति भो न करे। । १३३. प्र.-प्रतिक प्रतिमा किसे कहते हैं ? . ___उ०-पहली प्रतिमाके कर्तव्योंका पूर्णरूपसे पालन करते हुए जो निःशल्य होकर पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतोंका निरतिचार पालन करता है उसे व्रतिक कहते हैं।
१३४. प्र०-सामायिक प्रतिमा किसे कहते हैं ?
उ.-पहली और दूसरी प्रतिमाके कर्तव्योंका पूर्णरूप से पालन करते हुए जो तीनों कालोंमें सामायिक करते समय किसी भी प्रकारका उपसर्ग और परीषह आने पर भी साम्यभावसे नहीं डिगता वह सामयिक प्रतिमावाला कहलाता है।
१३५. प्र०-सामायिक की क्या विधि है ? . उ०-प्रतिदिन सबेरे, दोपहर और संध्याको एकान्त स्थानमें चटाईके ऊपर पहले पूरब या उत्तर दिशाको मुख करके दोनों हाथ लटकाकर खड़ा हो, दृष्टि नाकके अग्रभाग पर रक्खे । इसे कार्योत्सर्ग कहते हैं। फिर मनमें नौ या तीन बार णमोकार मंत्र पढ़के साष्टांग नमस्कार करे। फिर उसी तरह खड़ा होकर मंत्र पढ़के दोनों हाथ जोड़ तीन आवर्त और एक शिरोनति करे। अर्थात् दोनों हाथ जोड़ उन जोड़े हुए हाथोंको बाईं ओरसे दाईं ओर तीन बार घुमावे । इसे आवर्त कहते हैं। फिर खड़े-खड़े अपना मस्तक नवाके मस्तक को जोड़े हुए हाथोंपर रक्खे । इसे शिरोनति कहते हैं। पूर्व या उत्तर दिशामें इस कार्यको करके फिर उसी दिशासे दाहिने हाथकी दिशाकी ओर मुड़े और पहलेको हो तरह नौ या तीन बार णमोकार मंत्र पढ़कर तोन आवर्त और एक शिंरोनति करे। इसी प्रकार चारों दिशाओंमें करके पहले जिस दिशाकी ओर मुख किया था उसी दिशाकी तरफ मुंह करके पद्मासनसे बैठ जाये और फिर णमोकार मंत्रकी कमसे कम एक माला जपे । फिर सामायिक पाठ आदि पढ़े। आत्मचिन्तन करे । अन्तमें खड़े होकर कायोत्सर्ग करे और नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर साष्टांग दण्डवत् करे। - १३६. प्र०-प्रोषधोपवास प्रतिमा किसे कहते हैं ?
उ०—पहली तीन प्रतिमाओंका निर्दोष पालन करते हुए प्रत्येक मासके चारों पूर्वोमें अपनी शक्तिको न छिपाकर जो नियमपूर्वक उपवास धारण
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