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________________ १७ चरणानुयोग-प्रवेशिका १२६. प्र०-पाक्षिक श्रावक किसे कहते हैं ? उ०-जो अभ्यास रूपसे श्रावक धर्मका पालन करता है उसे पाक्षिक श्रावक कहते हैं। १२७. प्र०-पाक्षिक श्रावकके क्या कर्तव्य हैं ? उ०-मद्य, मांस, मधु, पांच उदुम्बर फल, रात्रि भोजनका त्याग, पंच परमेष्ठोको भक्ति, जीवोंपर दया और छानकर पानी पीना ये संक्षेपमें पाक्षिक श्रावकके मुख्य कर्तव्य हैं। १२८. प्र०-नैष्ठिक श्रावक किसे कहते हैं ? उ०-जो निरतिचार श्रावक धर्मका पालन करता है उसे नैष्ठिक श्रावक कहते हैं। १२९. प्र०-साधक श्रावक किसे कहते हैं ? उ०-जो श्रावक धर्मको पूर्ण करके आत्मध्यानमें तत्पर होकर समाधि मरण करता है उसको साधक श्रावक कहते हैं। १३०. प्र०-नैष्ठिक श्रावकके कितने पद हैं ? उ०-नैष्ठिक श्रावकके ग्यारह पद हैं-दर्शनिक, व्रतिक, सामयिक, प्रोषधोपवासी, सचित्तविरत, रात्रिभुक्तिव्रत, अब्रह्मविरत, आरम्भविरत, परिग्रहविरत, अनुमतिविरत और उद्दिष्टविरत । इन ग्यारह पदोंको 'प्रतिमा' नामसे कहा जाता है। १३१. प्र०-दर्शनिक प्रतिमा किसे कहते हैं ? उ०-जो विशुद्ध सम्यग्दृष्टि संसार, शरीर और भोगोंसे विरक्त होकर पंच परमेष्ठीके चरणोंका आराधन करता हआ शरीरके निर्वाहके लिये न्यायपूर्वक आजीविका करता है और मूल गुणोंमें अतिचार नहीं लगाता तथा आगेके व्रतिक आदि पदोंको धारण करनेके लिए उत्सुक रहता है, उसे दर्शनिक श्रावक कहते हैं। १३२. प्र०-दर्शन प्रतिमाका धारी क्या-क्या काम नहीं कर सकता? उ०-दर्शनिक श्रावक मन वचन कायसे मद्य, मांस और मधु वगैरहका व्यापार न स्वयं करे, न दूसरोंसे करावे और न उसकी अनुमोदना करे। मद्य मांसका सेवन करनेवाले स्त्री पुरुषोंके साथ भोजन आदि न करे। सब प्रकारके अचार मुरब्बेका त्याग करे। चमड़ेके बरतनमें रखे हुए पानी घी तेल वगैरहका उपयोग न करे। अज्ञात फलोंको नहीं खावे, रातमें औषधि पानी आदि भी न ले । पानी को गन्दे और छेदवाले वस्त्र से न छाने, एक बार छने हुए पानीको दो मुहूर्तके बाद पुनः छानकर हो काममें लावे। विलछानोको Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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