________________
१६
चरणानुयोग-प्रवेशिका १२० प्र०-प्रोषधोपवासवतके अतिचार कौनसे हैं ?
उ०-उपवासके दिन अप्रत्यवेक्षित अप्रमाजित उत्सर्ग ( बिना देखी और बिना साफ की हई भूमिमें मलमूत्र करना ), अप्रत्यवेक्षित-अप्रमाणित आदान ( बिना देखी और बिना प्रतिलेखन किये पूजाके उपकरण अथवा अपने वस्त्र आदिको ग्रहण करना), अप्रत्यवेक्षित-अप्रमार्जित-संस्तरोपक्रमण (बिना देखे और बिना प्रतिलेखन किये शय्या वगैरह बिछाना ) अनादर (भूखसे पीड़ित होकर आवश्यकोंमें उत्साहका न होना) और स्मृत्यनुपस्थान (चित्तको अस्थिर रखना ) ये पांच प्रोषधोपवासव्रतके अतिचार हैं।
१२१. प्र०-अतिथिसंविभागवतके अतिचार कौनसे हैं ?
उ.-सचित्तनिक्षेप ( सचित्त कमलके पत्ते आदिमें आहारको रखना ), सचित्तअपिधान (सचित्त कमलके पत्ते आदिसे आहारको ढाकना), परव्यपदेश ( अन्यकी वस्तुको उसकी बिना आज्ञाके अतिथिको अर्पण कर देना), मात्सयं ( अन्य दाताओंसे ईर्ष्या करना अथवा देते हुए भी आदरका न होना) और कालातिक्रम ( दान देनेके कालको उल्लंघन करके अकालमें दान देनेका उपक्रम करना ) ये पांच अतिथिसंविभागवतके अतिचार हैं।
१२२. प्र०-सल्लेखनाके अतिचार कौनसे है ?
उ०-जीविताशंसा ( समाधिमरण करते हुए जीवित रहने की इच्छा करना ), मरणाशंसा ( दुःख आदिसे छूटनेके लिए शोघ्र मरनेको इच्छा करना ), मित्रानुराग ( मित्रोंके स्नेहका स्मरण करना ), सुखानुबन्ध ( भोगे हुए सुखोंको स्मरण करना ), और निदान ( मरनेके पश्चात् देवलोक आदिके सुखोंकी इच्छा करना ), ये पांच सल्लेखना के अतिचार हैं।
१२३. प्र० --श्रावक किसे कहते हैं ? उ०-जो सम्यग्दृष्टि पुरुष पांच उदुम्बर तथा तीन मकार ( मद्य, मांस, और मधु ) के त्याग रूप आठ मूलगुणोंको और पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत, चार शिक्षावत रूप बारह उत्तर गुणोंको पालन करता है, पांचों परमेष्ठियोंके चरणोंको ही शरण समझता है, दान और पूजाओंको प्रधान रूपसे करता है उसे श्रावक कहते हैं।
१२४. प्र०-श्रावक कौन हो सकता है ?
उ०-ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य तो श्रावक हो हो सकते हैं। जिनका रहन-सहन स्वच्छ है, जो मद्य आदिका सेवन नहीं करते और शरीर शुद्धि पूर्वक भोजन आदि करते हैं ऐसे शूद्र भी श्रावकधर्मका पालन कर सकते हैं।
१२५. प्र०-श्रावकके कितने भेद हैं ? उ०-श्रावकके तीन भेद हैं-पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org