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चरणानुयोग-प्रवेशिका ११०.प्र.- कूटलेखक्रिया अतिचार कैसे है ?
उ०-जो मूढ़ सत्याणुव्रती 'मैंने झूठ बोलना छोड़ा है झूठ लिखना नहीं छोड़ा' इस भावसे झूठ बात लिखता है उसके लिए यह अतिचार ही है अनाचार नहीं है।
१११. प्र०-अचौर्याणुव्रतके अतिचार कौनसे हैं ?
उ.- चौरप्रयोग (स्वयं अथवा दूसरेके द्वारा चोरको चोरी करनेकी प्रेरणा करना ), चौरार्थादान ( चोर का माल लेना), विरुद्धराज्यातिक्रम ( राज्य में विप्लव हो जानेपर अथवा बिना विप्लव हुए हो राजके नियमोंका उल्लंघन करना ), प्रतिरूपकव्यवहार ( मूल्यवान वस्तुमें अल्प मूल्यवाली समान वस्तु मिलाकर बेचना जैसे असली घीमें वनस्पति घो मिलाना) हीनाधिकविनिमान (बाँट, तराजू, गज वगैरह कमती बढ़ती रखना-बढ़तीसे खरीदना, कमतोसे बेचना ) ये पाँच अचौर्याणुव्रतके अतिचार हैं।
११२. प्र०-चौर प्रयोग वगैरह अतिचार कैसे हैं ?
उ.-मूढ़ बुद्धि अचौर्याणुव्रती यह सोचता है कि मैंने चोरी करनेका हो त्याग किया है तथा प्रतिरूपक व्यवहार वगैरह तो व्यापारकी कला है, चोरी नहीं है, उसकी इस भावनाके कारण इन्हें अतिचार कहा गया है।
११३. प्र०-ब्रह्मचर्याणवतके अतिचार कौनसे हैं ?
उ०-परविवाहकरण ( दूसरोंका विवाह कराना ), इत्वरिकागमन ( व्यभिचारिणी स्त्री से सम्पर्क रखना), अनंगक्रीड़ा (स्वस्त्रीके साथ अप्राकृतिक मैथुन करना), विटत्व (अश्लील वचन बोलना और अश्लील चेष्टाएँ करना), कामतोत्र अभिनिवेश (काम सेवनकी तीव्र' लालसा होना) ये पांच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार हैं।
११४. प्र०-परिग्रहपरिमाण अणुव्रतके अतिचार कौनसे हैं ?
उ०-किये हुए धनधान्यके परिमाणका उल्लंघन करना, किए हुए भूमि गृह आदिके परिमाणका उल्लंघन करना, किये हुए सोने चांदोके परिमाणका उल्लंघन करना, किये हुये दास-दासी पशु आदिके परिमाणका उल्लंघन करना और किये हुए अन्य घरेल उपकरणोंके परिमाणका उल्लंघन करना ये पांच अतिचार परिग्रह परिमाण अणुव्रत के हैं।
११५. प्र०-दिग्वत अतिचारके कोनसे हैं ?
उ०-दिग्वतके पांच अतिचार हैं-ऊर्ध्वव्यतिक्रम (ऊर्ध्व दिशामें किये हुए जानेके परिमाणका उल्लंघन भरना), अधोव्यतिक्रम (नीचेको दिशामें किये हुए जानेके परिमाणका उल्लंघन करना ), तिर्यग्व्यतिक्रम (तिरछो दिशामें जानेके लिये किये हुए परिमाणका उल्लंघन करना), क्षेत्रवृद्धि (किये
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