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चरणानुयोग-प्रवेशिका उ.---जहाजकी तरह जो अपने आश्रितोंको संसाररूपी समुद्रसे पार करता है उसे पात्र कहते हैं।
८८. प्र०-पात्र कितने प्रकारके होते हैं ?
उ०-पात्र तीन प्रकारके होते हैं- उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । महाव्रती साधु उत्तमपात्र हैं। देशवती श्रावक मध्यमपात्र हैं और व्रतरहित सम्यग्दृष्टि जघन्य पात्र हैं।
८९. प्र०-दान देनेको क्या विधि है ?
उ०-साधको आहारदान देनेकी विधिके नौ प्रकार हैं-जब साधु अपने द्वारपर आवे तब भक्तिपूर्वक प्रार्थना करे - नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, नमोऽस्तु, टहरिये, ठहरिये, ठहरिये। इसे प्रतिग्रह या पड़गाहना कहते हैं। जब वह मौनपूर्वक प्रार्थना स्वीकार कर ले तब उन्हें घरके भीतर ले जाकर ऊँचे आसन पर बैठा दे। फिर उनके चरण पखारे । फिर उनकी पूजा करे। फिर पंचांग नमस्कार करे। आहार देते समय मन, वचन और कायको निर्मल रक्खे । इसे मनशद्धि, वचनशद्धि और कायशद्धि कहते हैं । नौवीं विधि अन्नशुद्धि है। बलपूर्वक शोधकर बनाये गये दोषोंसे रहित आहारका नाम अन्नशुद्धि है। इस प्रकार प्रतिग्रह आदि ५, मन, वचन और कायकी शुद्धता ३ और अन्नशुद्धि १ ये नौ आहार देनेकी विधियाँ हैं। ९०. प्र०-दानके कितने प्रकार हैं ?
उ०-दानके चार प्रकार हैं-पात्रदत्ति, समक्रियादत्ति, अन्वयदत्ति अथवा सकलदत्ति और दयादत्ति ।
९१. प्र०-पात्रदत्त किसे कहते हैं ? उ०-पात्रको दान देनेका नाम पात्रदत्ति है। ९२. प्र०-पात्रदानके कितने भेद हैं ?
उ०-पात्रदानके चार भेद हैं-आहारदान, उपकरणदान, औषधदान और आश्रयदान । मोक्षके लिये प्रयत्नशील संयमो-मुनिको शुद्ध मनसे निर्दोष भिक्षा देना आहार दान है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रको बढ़ानेवाले शास्त्र, पीछी कमण्डल वगैरह धर्म के उपकरण देना उपकरण दान है । योग्य औषध देना औषधदान है और उनके निवासके लिये श्रद्धापूर्वक वासस्थान देना आश्रयदान है ।
९३. प्र०–समक्रियादत्ति किसे कहते हैं ?
उ.-जो व्रत आदि क्रियाओंमें अपने समान है ऐसे सधर्मी भाईको श्रद्धापूर्वक कन्या, भूमि, सुवर्ण आदि देना समक्रिया या समानदत्ति है।
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