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चतुरदास कृत टीका सहित
मनहर
छंद
१. दल ।
सतधन्वा
बबस्व नघुष, उतंग भूरद जदु जजाति सरभांग पूर, दीयो जोबन गै दिलीप अंबरीष मोर-धुज सिवर पंड चंद्रहास श्ररुरंत, मानधाता चकवै संज समीक निम भारद्वाज, बालमीक चित्रकेत दक्ष ।
भुव ।
तन मन धन श्रपि हरि मिले, जन राधो येते राज- रिष ॥३७ श्रादि सक्ति ॐ नमो नमो, लक्ष उमां ब्रह्मांणी ।
रांगी ।
नमो तिपुर कन्यां सु, नमो पतिबरता सति रूपा देहूति, सुनीति कौसल्या तारा चूड़ाला, कहिये
सुमित्रा
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बल ।
बल' ।
धुव ।
अहल्या ।
पहल्या |
सीतां कुंतां जयंती बूंदा, सत्यभांमां द्रोपती । प्रदति जसौधा देवकी, श्रब धर्म सरिवोपती ।
मंदवरि त्रिजट मंदालसा, सची अनसुया अंजनीं । जन राघो रांमहि मिली, पतिबरता पतिरंजनीं ॥ ३८
ॐ कारे
आदिनाथ उदैनथ उत्पति, ॐमांपति सिंभू सत्य तन मन जित है । संतनांथ बिरंचि संतोषनांथ बिष्णजी,
जगनाथ गणपति गिरा को दाता नित है । अचल अचंभनाथ मगन छिंद्रनाथ,
गोरख अनंत-ज्ञांन मूरति सु बित है । राघो रक्षपाल नऊ नाथ रटि राति दिन,
जिनको अजीत अबिनासी मधि चित है ॥ ३६ प्रेयब्रत प्रगट पसारौ तज्यौ प्रथम ही,
बृकत बैरागी भयो मोक्ष पद कारणै । arat बिधि बिबिधि सुनायौ मत-मातंग ज्यूं,
लेहु सुत राज परकाज तोहि सार । मन बिन जीते न मिटत्त मनसा के भोग,
है प्र रोग सोई क्यूं न अब टार ।
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