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चतुरदास कृत टोका सहित
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साथि सहेलिन आवत बागहि, होइ जुदी छबि देखित भी । कागद पाघ लयो कि बांचत, देन लिख्यौ विष तातहि खीजी । नाम हुतौ बिषया द्विग काजल, लै बिषया करि कैं रस-भीजी । आनि मिली फिर आलिन मैं मद, लालन ध्यांन गई गृह धीजी ॥ ६१ चंदरहास गयो पठ्यो जित, देखि मदन गलै स लगायो । कागद हाथि दयो उन बांचत, बिप्र वुलाइ र ब्याह करायो । रीति करी नृप जीति लिये धन देत गयो निठि चाव न मायो ।
बन
जाऊं ।
पाऊं ।
इपिता सुनि मीच भई किन, बींदहि देखि घणों दुख पायो || ६२ बैठि इकांत कही सुत बात, करी प्रति भ्रांत सु पत्र दिखायौ । बांचत पहि कौं धिरकारत, रांड सुता परि मारन भायौ । नीं बुलाइ कही मढ़ जा करि, प्रावत ता नर मारि सुहायौ । चंदरहास करौ तुम पूजन, है कुल-मात सदा चलि आयौ ॥ ६३ पूजन जात कहै नृप पुत्रन, मैं उन राजहि दे ल्याव बुलाइ मदन भलौ दिन, जाइ महूरति फेरि न बेगि गयो चलि जाइ लयौ मग, देत पठाइ म सेव करांऊं । पैठत बद्ध करयौ इन भूपति, राज दयो अब मैं न रहाऊं ॥ ६४ इ कहीस मदन मुवो मढ़, कांपि उठ्यौ र झरी द्रिग लागी । देखि परचौ सिर पाथर फोरत, मृतु भई समझयौ न प्रभागी । चंदरहास चले मढ़ पासहु, मातहि श्रंग चढ़ावत रागी । मात है तव मैं अरि मारत, ह्र सरजीव उठे बड़ भागी ॥ ६५ राज करे इम भक्त किये सब, पासि रहै तिन क्यूं र बखांनौं । नांम उचारत धांमन धांमन, कांम न और सू सेव न मांनौं । मोहन लोभ न कांम न क्रोध न है मद नांहि न नैंन नसांनौं । आदिर अंति कथा उर भावत, प्रात प्रढ़ फल जै मन जांनौं ॥६६
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समुदाई टीका
नांम कुखार अपत्ति सुमैत्रिय, राघवदास बखांन करयी है । कृष्ण कही मम भक्त बिदूर जु, दे उपदेसहि भाव भरचौ है । प्रेम-धुजा चित्रकेत पुरांनन, दूसर देह पलट्टि बरचौ है । ध्रु करूर बड़े पृय उधव, पत्रन पत्रन
नांम धरयो है ॥ ६७
१. पढे = पुत्री |
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