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________________ धतुरदास कृत टीका सहित [ १९ ध्र वजी का मूल धू व की जननी धुव सूंज कहै, सुत रांम बिनां नर-नारि न वोपैं। रोज तजौ हरि नाम भजौ, खल की बृति त्यागि कहा अब को। धुव के मन में बन की उपनी अब, ज्ञांनी सोई जो अज्ञान को लोपे । राघो मिले रिष नारद से गुर, बोल बढ्यो हरि प्रांगे तोपै ॥३२ सुदामाजी का मूल मनहर पतनी प्रमोधत है पति कौं बिपति मधि, कंत जिन लेहु अन्त कह्यौ मेरौ कीजिये । आपां हैं नृबल निरधार निरधन प्रति, __झौंपरा पैं नाहीं फूसभ मनमै भीजिये। कहत सुदांमां सुनि बावरी उघारै अंग, मो 4 कछू नाही भेट कैसैंक मिलीजये। राघो रौरि चावल कवल-नैन काजै कन, लूघरे की बांधी गांठि जाहु दिज दीजिये ॥३३ चले हैं सुदामा दिज द्रुबल दुवारिका कौं, जाके छुये बर कोऊ खात नै खलक मैं । प्रागै भेटे कृष्णजी कृपाल करुणा-निधान, ___ लेक भरि मूठी आप पारोगे हलक मैं । सदन सुदामां के जु अष्ट-सिधि नव-निधि, इंद्र हु कुबेर सम कीयो है पलक मैं । राघो गयो उलटिउ सास लेत बारू-बार, . देखि दुख भूलो मरिण-माया की झलक मैं ॥३४ सुदामाजी की टोका इंदव आपन धांम कनंक-मई लखि, मांनत कृष्ण पुरी चलि आई। छंद नीकरि लैंन गईं तिरिया तिहि, मांहि चलौ तब मित्र बनाई। ध्यांन वहै हरि माधुरता तन, दे हरखै नव प्रीत बधाई। चाह नहीं उर भोगन की वहै, चाल चलै तन कौं निरबाई ॥५३ बिदुरजो को टीका न्हावत अंग पखारि बिदुर्तिय, कृष्ण जु आइर बोल सुनायो। प्रेम भयो मद पीवत लाज न, दौरि वही बिधि द्वार चितायो । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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