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चतुरदास कृत टीका सहित
राघौ धनि धू से देखो अटल प्रकास तपे,
नारद निराट नग नांव देत चुनि के ॥२० आदि अंति मध्य बड़े द्वाद भक्त रत तहां,
सत्य स्वांभू-मनु अखंड अजपा जपे। जाके सुत उभये उद्यौत ससि सूर समि,
नाती धूव अटल प्रकास अजहूँ तपै । दिव्य तन, दिव्य मन, दिव्य दृष्टि, दिव्य पन,
अन्य भगत भ[ग]वंतजी ही कौं थपे । राघो पायो अजर अमर पद छाड़ी हद,
अरस परस अबिनासी संग सो दिपै ॥२१
सनका संनदन सनातन संत कुमार,
करत तुम्हार त्रियलोक मधि ज्ञान कौं। बालक विराजमान सोभै सनकादिक असे,
प्रात मुख सेस कथा सुनत नित्यांन कौं। मन बच क्रम मधि बासुर बसेख करि,
धारत बिचार सार स्यंभूजी के ध्यान कौं। राघो सुनि साझ काल विष्णुजी के बैन बाल,
रहै छक छहूं रुति श्रुति बृति पान कौं ॥२२ नमो रिष कदम देहूति जननी • ढोक,
तारिक तृलोक जिन जायो है कपिल मुनि । काम जि क्रोध जित लोभ जि मोह जित,
तपोधन जोग बित माता उपदेसी उनि । सील कौ कलपवृक्ष हरत विष की तप, . - ब्रह्म को मूरति आप अंतरि अखंड धुनि । राघो उनमत प्रमंतत मिलिः येक भये,
तावत उत्म कृत कीन्हे यौं मुनिंद्र पुनि ॥२३ भगतन हित भागवत बित कृत कीन्हौं,
व्यासजी बसेख खीर नीर निरवारघौ है।
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