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राघवदास कृत भक्तमाल सांप बि बपु मांहि रहे बसि, साध डसै न उपाइ करे हैं। अष्टउ कौंरण त्रिकौंग्ण पुनै षट, जीव जिवावन जंत्र खरे हैं। मीन रु बिन्दु बसीक्रन यौ पद, रांम धरे जन प्रांन हरे हैं। सागर पार उतारन कौं जन, ऊरध-रेख सु-सेत धरे हैं ॥२१ इन्द्र-धनुष धरयौ पद मैं हरि, रांवन आदिक मांन निवारयौ। मांनुष रूप बसेष सुनौ पद, सुन्दर स्यांम जु हेत बिचारचौ । जो मन शुद्ध करै सुभ क्रमन, या जन ज्यौं रखि हौं सु उचारयौ। जो बुधिवंत सदा सुख सम्पति, मैं गुन गाइ यहै पन पारचौ ॥२२
मूल-छप कवला कपिल बिरंच, सेस सिव श्रब सुखकारी। भरिण भीषम प्रहलाद, सुमरि सनकादिक च्यारी। व्यास जनक नारद मुनी, धरम परम निरने कीयो।
अजामेल कौं मारतें, जमदूतन कौं दंड दीयो। द्वादश भक्तन की कथा, श्री सुकमुनि प्रीक्षत सूं कही।
जन राघो सुनि रुचि बढी, नृप की बुधि निश्चल भई ॥१८ मनहर मीन बरा कमठ नस्यंघ बलि बांवन जू,
छल करि प्राय देवकाज कौं सवारे हैं। रांम रघुबीर कृष्ण बुध कलंकी धीर व्यास,
पृथु हरि हंस खीर नीर निखारे हैं। मनुत्र जग्य रिषभ धनत्र हयग्रीव,
बद्रीपति दत्त जद गुर-ज्ञांनते उवारे हैं। ध्रुव बरदान सनकादि: कपिल ज्ञान,
___ जन राघो भगवान भक्त काज रखवारे हैं ॥१६ केते नर नारद नैं नांव सूं नमल कीये,
दक्ष-सुत लीन भये बीन सुर सुनि के। नरपति उलटि पलटि देखौ नारि भयो,
__तहां रिष आप भयो भूरि भागि' उनि के। असुर की नारि सुर साहि वंदि छुड़ाइ,
तहां प्रहलादजी प्रगट भये मुनि के।
१. भांगि।
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