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________________ १२ ] राघवदास कृत भक्तमाल ब्यास प्रति सुक मुनि प्रादि अंति पढि गुनी, प्रथम सुनाइ नृप प्रीक्षत उधारयौ है। सूत कौं सकंद बार दयो बर ताही बार, श्रोता सौनकादि सो सदैव पन पारयौ है। राघो कहै सार है संघार करै पापन को, प्रापन कौं उत्यम सुने तैं फल च्यारयौं' है ॥२४ गगन मगन महा गंगेव गंगासौं भयो, देखि सुत सांतन प्रवीन परवारचौ है। धींवर की कन्या मांगि जिणत प्रणायो जिन, प्रथम प्रमार्थी पिता के काज प्रायौ है । व्याह तज्यौ, बल तज्यौ, राज तज्यौ, रोस तज्यौ, धनि धनि जननी गंगेव जिनि जायौ है। राघो कहै सील कौ सुमेर है गंगेव गुर, ___ काछ-बाछ नि:कलंक मोक्ष पद पायौ है ॥२५ धनि धरमराइ कह्यौ प्राय मत मूरख सौं, मारेंगें कपूत मम दूत संधि तोरिके। मन बच क्रम कछु धर्म करि धीरज सूं, राम राम राम गुन गाइ सुति डोरिकै । काम क्रोध लोभ मोह मारिकै निसंक होह, साहिब सौं सांनकूल राखि चित चौरिक। राघो कहै रवि-सुत मेटियो कर्म-जुत, रांमजी मिलावो वरदाता बंदि छोरिकै ॥२६ तनके दिवान तिहूं लोक के वाकानवीस, चित्ररगुपतर नमो कागदी करतार के। बीनती करत हूं बिलग जिनि मानौ मेरौ, छेक यो अध्रमक्रम प्रांक अहंकार के। लिखियो अरज असतूति प्रति बार बार, बाइक बनाई कहौ प्रभुजी सूं प्यार के। १. उचारचों हैं। २. मोरि के। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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