________________
८ ]
राघवदास कृत भक्तमाल व्यास कलंकी बुद्ध मनुंतर, पृथु हरि हंसा।
हयग्रीव जज्ञ रिषभ धनुन्तर, ध्रव बरदंसा। दत्त कपिल सनकादि मुनि, नर नारांइन सुमरि सो। चतुरबीस अवतार जो, जन राघो के उर बसौ ॥१६
टीका इंदव कूरम ह गिर मन्दर धारि, मथ्यौ सब देव दयन्त समुद्रा। छंद मीन भये सतिबर्त सु अंजलि, लै परलै दिषराइहु क्षुद्रा ।
सूकर काढ़ि मही जल मांहि रु, मारि हिनाक्षस थापि र दुद्रा। सिंघ सरूप प्रलाद उधारन, द्वैत हिरणांकुस फारन उद्रा ॥१० बावन रूप छले बलिराजन, इन्द्रहि राज दियो इकतारा । मात पिता दुखदाइक जो, प्रसरांम खित्री न रख्यौ जग सारा । रांम भये दसरत्थ तण वर, रांवन कुंभकरन बिडारा। कृष्ण जरासुव कंस हने मुरि, साल्वहि मारि भगत्त उधारा ॥११ बुद्ध छुड़ाइ जज्ञादिक जीवन, जैन दया ध्रम कौं बिसतारा। रूप कलंकि जबै धरिहैं हरि, भूप करें अपराध अपारा। ब्यास पुरांनन वेद सुधारन भारत प्रादि बिदांत उचारा । दोहि धरा श्रब बांटि दई रिधि, गांव पुरादिक प्रिथु सुधारा ॥१२ ग्राह गह्यौ गज कू जल भींतरि, राम कह्यौ हरि बेग उधारयौ। हंस सरूप धरयौ अज कारनि, प्रष्ण करी सुत हेत बिचारयौ । रूप मनुतर धारि चवदह, इंद्र सुरेसहु कारिज सारयो । जज्ञ भये मनु राखन मंजुल, आदि र अंति जगें बिस्तारयौ ॥१३ ब्रह्महि ज्ञान दिखाइ सवै जग, देव रिषम्भ सरीर जरायो। बेद हरे मधुकैटक दानव, सों हयग्रीव हन्यौ श्रुति ल्यायो। बालक आरन भक्ति करी अति, ५ बर दे हरि राज करायो। रोग र भोग भरयौ दुख सूं जग, होइ धनुतर बैद स आयो ।।१४ आतमग्यांन उदित्त कियो जिन, सो बद्रिनाथ या खंडर के स्वामी। ज्ञान कयौ गुर को जदुराजहि, आनंद में दत अंतरजांमी।
१. काटि। २. या पाखंड ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org