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________________ चतुरदास कृत टीका सहित छपे छंद राघौ कहै सबद सपरस रूप गंध, दूरि कीजे दीनबंधु ये तौ दोष मेरौ है ॥१२ नमो बिधि बिधि प्रकार के रचनहार, प्रादि ततवेता तुम तात त्रिहूँ लोक के । जप गुर तप गुर जोग जज्ञ व्रत गुर, आगम निगम पति जांरग सब थोक के । नर पुजि सुर पुजि नागहूँ श्रसुर पुजि, परम पवित्र परिहारि सर्व सोक के । ऊपजे कवल मधि नाभि करतार की सूं, राघो कहै मांनियो महोला मम थोक के ॥१३ अरक प्रहार सिणगार भसमी को भर, सो हर निडर निसंक भोला चकवै । पूरक पवन प्रारण वायु को निरोध करें, जपति प्रजपा हरि रहे थिर थक्कुवै । गौरी श्ररधंग संग कीयो है अनंग भंग, Jain Educationa International कालहू सूं जीत्यो जंग पूरा जोगी पक्कवै । राघौ कहे जगै न' जगतपति सेती ध्यान, afsi aडोल प्रति लागी पूरी जक्कवै ॥१४ प्रादि अनभूत तू श्रलेख हैं श्रद्वीत गुन, नमो निराकार करतार भने सेस है । हारे न हजार मुख रांम कहै राति दिन, धारें धर सीस जगदीशजी के पेस है । दुगरण हजार हरि नांव निति नवतम, रटत अखंड व्रत भगत नरेस है । राघो कहै फनिपति सौ अन्य न प्रति, केवल भजन बिन प्रांनन प्रवेश है ॥१५ चतुरबीस अवतार जो जन राघो के उर बसौ ॥० कछ मछ बाराह, नमो नरस्यंघ बांवन बलि । रघुवर फरसाधरन, सुजस पिवत्र कृष्ण कलि । १. छूट नहीं । २. पित्र । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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