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राघवदास कृत भक्तमाल चतुरदास कृत टीका सहित .
टीका-कर्ता को मंगलाचरण साख (दोहा) गुर गनेस जन सारदा, हरि कवि सबहिन पूजि ।
भक्तमाल टीका करू', मेटहु दिल की दूजि ॥ इदव पैल निरंजन देव प्रणांमहि, दूसर दादुदयाल मनांऊं। छद सुन्दर कौं सिर ऊपरि धारि रु, नेह निरांइणदास लगांऊं।
रांम दया करिहैं सुख संपति, मैं सु संतोष जु सिष्य कहांऊं । राघवदास दयागुर प्राइस, इंदव छंद सटीक बनाऊं ॥१
टीका : सरूप-वर्णन कावि बनावत आनंददाइक, जो सुनिहैं सु खुसी मन माहीं। माधुरता अति अक्षर जोड़न, आइ सुनै सु घने हरखांहीं । जोड़ सराहत जे अपने कवि, ताहि सबै कहि सो कछू नांहों। ह उर भाव र ग्यांन भगत्तन, राघव मो तन टीक करांहीं ।।२
भक्ति-सरूप वर्णन भावत भगति तियां श्रब संतनि, तास सरूप सुनौं नर लोई। नांव सुनीर नवन्य नहावन, वेस विवेक बन्यौ बप वोई । भूषन भाव चुरा चित चेतन, सौंध संतोष सु अंग समोई। अंजन आनंद पांन सचौपन, सेज सदा सतसंगति सोई ॥३
भक्ति पंच रस-वर्णन पांच भगत्य कहे रस संतन, सो बिसतार भलीं बिधि गाये। १बाछलि २दास्य ३सखापन ४सांत रु और सिंगार सरूप दिखाये। टिप्पण' को उर स्वाद लहौ जब, बैठि बिचार करौ मन भाये । रोम उठे न बहै द्रिग ते जल, अँसिनु प्रेम समुद्र बुड़ाये ॥४
१. करौं। २. अपनी। ३. सो। ४. प्रानन्दयान। ५. टप्पण ।
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