________________
भक्तमाल
क्ष ] टिप्पण लिखे हुये हैं और अन्त में टीकाकार की प्रशस्ति के पद्य इसमें नहीं लिखे गये हैं। कुल पद्यों की संख्या ११८५ दी हुई है। लिखने का समय दिया नहीं गया है, पर १६वीं शताब्दी की है। पद्यों की कमी-बेशी व संख्या में गड़बड़ी
स्वामी मगलदासजी वाली प्रेस-कापी में पद्यों की संख्या १२८६ दी गई है। इससे मालूम होता है कि करीब १०० पद्य पीछे से बढ़ाये गये हैं। इन पद्यों को स्वामी राघवदासजी या टीकाकार ने बढ़ाया है या और किसी ने-यह अभी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। पर यह निश्चित है कि संवत् १८६१ और संवत् १९०० के बीच में यह परिवर्द्धन हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ के पृष्ठ २४८ में तीन प्रतियों की लेखन-प्रशस्ति में ग्रन्थ की श्लोक संख्या यद्यपि ४१०१ समान रूप से लिखी हुई है पर प्रति नं० १-२ से प्रति नं० तीन में दी हुई छन्दों की संख्या भिन्न प्रकार की है। चतुरदास की टीका के इन्दव छन्दों की पद्य संख्या तो तीनों प्रतियों में ६२१ दी हुई है, पर राघवदास के मूल पद्यों की संख्या में अन्तर है और लेखन-प्रशस्ति में छन्दों के नाम के साथ जो संख्या अलग-अलग दी हुई है, वह कुल पद्यों की संख्या से मेल नहीं खाती। जैसेA और B प्रति : छप्पय ३२८, मनहर १५२, हंसाल ४, साखी ३८, चौपाई २,
इन्दव ७५। C प्रति : दोहा १, छप्पय ३३३, मनहर १४१, हंसाल ४, साखी ३८,
चौपाई २, इन्दव ७५ । अर्थात् C प्रति में छन्दों की संख्या में ५ छप्पय और ११ मनहर छन्दों की संख्या ३ बतलाई गई है, पर कुल पद्यों की संख्या ११८५ बतलाई है, जो A और B में १२०४ बतलाई गई है। अर्थात् १६ पद्यों की संख्या में कमी बतलाने पर भी वास्तव में अलग-अलग छन्दों के संख्या-विवरण में छप्पय ५ और मनहर ११ कुल १६ ही कम होते हैं। आश्चर्य की बात है कि अलग-अलग छन्दों की संख्या का मिलान कुल छन्दों की संख्या से भी ठीक नहीं बैठता। जैसे प्रति नम्बर A और B में कुल पद्यों की संख्या १२०४. बतलाई है, उसमें से टीका के ६२१ पद्यों के बाद देने पर मूल ग्रन्थ के पद्यों की संख्या ५८३ रह जाती है। पर छन्दों के विवरण के अनुसार वह संख्या ६०६ बैठती है। अर्थात् २६ पद्यों का फर्क पड़ जाता है। इसी तरह प्रति नम्बर C में कुल पद्यों की संख्या ११८५ दी गई है,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org