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________________ [ है भूमिका सबसे प्राचीन थी, उसकी नकल करवा ली गई। यह प्रति चतुरदासजी को टीका की रचना (संवत् १८५७) के केवल ३।। बरस बाद की ही (संवत् १८६१ के वैशाख वदि ३ डीडवाणा में) लिखी हुई है। चतुरदासजी के शिष्य नन्दरामजी के शिष्य गोकलदास की लिखी हुई होने से . इस प्रति का विशेष महत्व है। अतः इसका पाठमूल में रखकर (२) संवत् १८६७ की लिखो हुई दूसरी (B) प्रति से पाठ भेद देने का विचार किया गया, पर मिलान करने पर वह प्रति भी संवत् १८६१ वाली प्रति की नकल-सी मालूम हुई, अतः कोई खास पाठभेद प्राप्त नहीं हो सका। इन दोनों प्रतियों की लेखन-प्रशस्ति इस ग्रन्थ के पृष्ठ २४८ में छपी हुई है। (३) इसी बीच बीकानेर राज्य के एक प्राचीन नगर रिणी (तारानगर) मेरा जाना हुआ, तो वहाँ के तेरहपंथी सभा के ग्रन्थालय में कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ यों ही पड़ी हुई थीं, उनको मैं सभा के संचालकों से नोट करके ले आया। उसमें प्रस्तुत भक्तमाल की एक प्रति संवत् १८८६ की लिखी हुई प्राप्त हुई। इस (C) प्रति से मिलान करके जो पाठ-भेद प्राप्त हुये, उन्हें टिप्पणी में दे दिया गया है। ६० पत्रों की इस प्रति की लेखन-प्रशस्ति भी प्रस्तुत संस्करण के पृष्ठ २४८ की टिप्पणी में दे दी गई है। प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में प्रधानतया इन तीनों प्रतियों का ही उपयोग किया गया है। मूल पाठ संवत् १८६१ की प्रति का प्रायः ज्यों का त्यों छापा गया है। (४) प्रस्तुत ग्रन्थ छप जाने के बाद स्वामी मंगलदासजी की प्रेसकॉपी से भी मिलान करना जरूरी समझा, अतः उनके वहाँ से उक्त प्रेसकॉपी फिर से मंगवाई गई । मिलान करने पर विदित हुआ कि उसमें काफी पद्य अधिक हैं। अतः जहाँ-जहाँ जो पद्य अधिक हैं, उन्हें नकल करवाके परिशिष्ट में दे दिया गया है। (५) जोधपुर जाने पर श्री गोपालनारायणजी बहुरा से विदित हुआ कि राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान में इसकी एक प्रति और खरीदी गई है, तो उसे मंगवाकर देख लिया गया। पहले की तीनों प्रतियों में ग्रन्थ की श्लोक संख्या ४१०१ लिखी हुई थी, इस प्रति में वह संख्या ४५०० तक लिखी हुई है अर्थात् यह प्रति भी परिवद्धित संस्करण की ही है। ६२ पत्रों की यह प्रति सं० १६०० की लिखी हुई है। (६) ६ठी प्रति भारतीय विद्या मंदिर शोध संस्थान, बीकानेर में देखने को मिली। यह प्रति पूर्व प्राप्त तीन प्रतियों जैसी ही है। पर हाँसिये में अनेक जगह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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