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भक्तमाल
यह साल मिट ततकाल करौ तप मृतक व्है सुत धाम धनी कौ ।
राघो कहे कुल की ममता तजि ग्यांन के खडग सूं मार मनी कौ ॥६॥ मनहर लग गयो राम रंग रघवा रिजक मधि,
कंवर कलेश तजि ग्यांनी गच्दछ्यो वन कों। मंत्रिन सुनायो जाय नृपति सौं ततक्षरण,
ध्र व वन चल्यौ कहा हुकम है हम कों ॥ राजा पूछी रांरगी उन वात जानी हँसी खेल, - दो दो सेर अन्न दे संतोषो वाके मन कों। एतै पर धूनें कही द्वार ही पें दून भई,
धन धन धन जगदीश दियो जन को ॥११॥ इन्दव धूने को नृप सौं कर छाडिये मैं मरिहौं अपघात को प्रायो।
सेरह नाज में फेर करी तुम देन लगे अब राज सवायो । ता वेर क्यौं न विचार कियो तुम गोद में से गदका दे उठायो। राघौ गच्छयौ ध्र व राम के काम को प्राप रह्यौ रुप बाप झुठायो ॥१७॥ लियो पथ पंचमास फल मूल पानी पौन,
छठ मास संयम संतोष मन मारयौ है । जप नेम प्राणायाम प्रासन आहार द्रढ़,
प्रत्याहार धारणा समाधि ध्यान धारचौ हैं । माया छलवे को छलबल बहौतेरे किये,
पच रही रेंग-दिन रोमहू न टारचौ है। राघौ तब भेटे राम मन वच कर्म करि,
धू को दीजै राज अाज वा वे यौं विचारचौ है ॥२३॥ रामजी नै राज दियो रामजी बनायो साज,
धन तप धू को आज भवन पधारे हैं। अष्ट सिद्धि नव निधि प्राय जुरी सारी विधि,
समर्थ धरणी – एक सेर-सों वधारे है ॥ गरीबनिबाज नैं गरीब जान दाद दई,
राम रथ बैठ हलके सें भये भारे हैं।
मनहर
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