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- भूमिका वर कियो विश्वामित्र विष्णुजी की प्राज्ञा पाय,
त्राहि त्राहि त्राहि नाथ तीनों लोक पेखनो। राघौ कहै राम काम एसी विधि कीजिये तु,
कासी के नखासै विक विप्र विण धेकनो ॥३०॥ राजा मोल लीयो काल दमन ही नामा डौम,
कहर कसौटी नाम लेत लाज मरिये। जाचक के द्वार जल भरवायो हरिचन्द,
धरम-धुरीण वैसे पालोकन करिये ॥ छितभुज छेत्रन को राख्यो रखवारो वनि,
माया मौरण माथे धरि सन्ध्या प्रात भरिये। सेर चून पावे समसान भूमि भोजन व्है,
राघौ अबगति गति सेति ऐसे डरिये ॥३५॥ तक्षक भये हैं ततकाल विश्वामित्र मुनि,
राघौ चढि रूख रोहितास वन डस्यो है। जाकै जी मैं कसर कटाक्ष नांही कामना की,
___ को जाने कर्तार गति काहे को धो कस्यौ है । बालक विलाप कर तो वा त्रयलोक नाथ,
धर्म की जहाज बूडी ऐसौ ज्ञानी ग्रस्यो है। बोल्यौ रोहितास जिन रोवो मुनि मेरी सोंह,
पाहणे सों देख पेख काको घर वस्यो है ॥४३॥ कंचन किरच सुमेरु को, सापर सरवा नोर ॥ सूरज वाती ससि दसी, कल्पवृक्ष चव चीर ॥ इकलव गिरा गणेश को, वागी र वारतीक ॥ पित्रण कुं जल अंजियां, देवन फूल पतीक ॥ यों रघवाने रंचक कथ्यो, गुण हरिचंद हेट अनेक ॥ सब कवि पंडित सुरता सुघर, सुन कोजो छमा छनेक ॥६४॥
ध्रुव चरित्र इन्दव ध्रुव की जननी ध्रुव को समझावत रोवे कहा रटि राम धरणी कों।
केतौक राज कहा नृप प्रासन का पर तूं कर मेलब नीकों ॥
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