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भक्तमाल
मनसूर का वर्णन मनसूर अलह की बन्दगी, अनल-हक्क कहि यों मिले ॥
अनल-हक्क अनल-हक्क, कहै मनसूर जु प्यारो। काजी मुल्ला सबै कहै, मिलि गरदन मारो। डरपे नहिं हुशियार, आप दिल साहिब भायो। जारि बारि तन भस्म, उदधि के मांहि बहायो । राघौ कंचन ताइकै, हक्क हकी कतियों मिले। मनसूर अलह की बन्दगी, अनल-हक्क कहि यों मिले ।।७५१
___ वाजोन्द ख्वाज को वर्णन ख्वाज वाजीन्द दरि मजल की, स्वाही राह ठाही करी॥
मृतक बैठो ऊंट, देखि तिहिं अति डर लाग्यो। बिना वन्दगी बाद, स्वाद सब तजि करि भागो। सुन ही वनके मांहि, काटि तिहिं नीर पिलायो। करी वन्दगी सार बेचि नहि, निमिक खिलायो। राघौ खुदी जुलम तजि, साहब मिले तबकरी ॥ ख्वाज वाजोन्द दर मजलकी, ख्वाही राह ठाहो करी ।।७५२
बन्दा शाह खुदायका, बैठा जीतल जीति । माल मुलक राघौ कहै, अरपि अलह को प्रीति ।।१ कुल ही जामां बेच के, ताम बुखोर महकु। राघौ उन मन अरसमें, अवलि मजिल परिपकु ॥२ इक दमरी के साग कों, हजरत कही हुशियार । सवा भए राघौ कहै, बकसि नूह करतार ॥३ मल मालिक त्रियलोक में, शोभित सरवरदीन । राघौ जग जीतै न कों, दृष्टि परत है हीन ॥४ तब पैज बदी पतिशाह ने, जो जंग जीते याहि । शहर सहित राघौ कहै, दुखतर ब्याहूं ताहि ॥५ यों राघौ अायो शेख के, भेष गदाई धारि। बरा खुदाई काम है, तूं मुझ प्रागे हारि ॥६ राघौ सरवरदीन धनि, सुनि कीन्ही इकतार । मैदा मिश्री घी गिरी, ताम बुषोरम यार ॥७
साखी
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