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परिशिष्ट १
छप्पय छंद
[ २५७ काठ की रोटी बनाय पेट सों बांधी चढाय,
क्यूं कही बढाय बात पूछिए सरीद कों। राघौ कहै तीसरे तरूर तप तेग भयो, प्राय के खुदाय दयो मौज दे मुरीद को ।।७४६
सुलतानां का वर्णन अजब है मजब गजब सों तरक दई,
शाह सुल्तान गलतान गल गूदरी। आसफ अटारे लखि बुलक बुखारै देश,
त्यागे हाथी हसम सहस्त्र सोला सुन्दरी। मादर विरादर वलक खेस ख्वाहि खेल,
खेलत खालिक दर छडि रहे बूदरी। राघौ कहै कदम करीम के करार दिल, शाहि रू खुदाई मिले माबूद माबूदरी ॥७४८
हेसमशाह वर्णन । दुश्मन करे दरेग, तेग हेतम सों हारयो। इक गजा करत दरवेस, शाह तजि सर्म पुकारयो । दुखतर करौं कबूल, सकल चाकर घर खंगो । दरबड़ चाहु दिवान, जाय हेतम सिर मंगो। जिन्दै किया पयान, खारण कुछ खरच मंगाया। कुछ दिन लागे बीच, नगर हेतम के आया। जन राघौ मिले अवाज करि, देहु सिर नियत खुदाई। मैं आया तकि तोहि, सकस ने शरम गहाई ।।७४६
यों हेतम बूझी माय, फक्कर मेरो शिर मंगै। पिसर नियत खुदाय, देहु दिल करो न तंगे। मादर की दिल खूब रहै, खालिक सों नेरी। रे तुम जाहु फकर के, साथि सुनों सुत वातां मेरी। सुत चले कुनन्द करि, माय पायन गो सिर खुले।
तब दुशमन देखि रहफ गये, अवगुन सब भूले। सकल हसम घर राज तन, दुखतर दे पांऊ परयो । जन राघौ हेतमशाह का, यों अलह शीष कायम करयो ।।७५०
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