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________________ परिशिष्ट १ [ २५९ यों परमारथ के कारण, जन राघौ हारयो सूर। साहिब सरवरदीन विचि, पड़दा है गये दूर ।।८ एक विपिन द्वै सिद्ध निपुन, साधक करी तरक। अरस-परस शोभा सरस, राघौ दुवै गरकू ।।। मुसलमान मुरतजाअली, करी भली इक रोस । जन राघौ काज रहीम के, पुरई परकी हौंस ॥१० राघौ सन्त जु ऊतरे, सेउसमन घरि आयके ।। पिता पुत्र पुनि मात, आहि अति पण के गाढे । घर में कछु नहिं अन्न, सोच सब दिन मन वाढे। चोरी गए समन, फोरि घर अन पकरायो। वणिक पुत्र सुत गह्यो, काटि मस्तक ले आयौ। धड़ सूली मस्तक फिरयो, परसाद कियो जन भायके । राघौ सन्त जु ऊतरै, सेउसमन घरि प्रायके ॥७५३ काजी महमद वर्णन करुणां विरह विलाप करि, काजी महमद पिव मिले ॥ आठ पहर गलितान, छक्यो रस प्रेम सुं मातो। टोडी अाशा राग, प्रीति सों हरि गुन गातो। पुत्री को सुत मृतक देखि, मन दया जु पाई। सुता कियो मन सोच, मृतक सों लियो जिवाई। राघौ कुल-मरजाद तजि, काम क्रोध सब गुरण गिले। करुणा विरह विलाप करि, काजी महमूद पिव मिले ॥७५४ नमस्कार द्वादश पंथ जोगी नमो, नमो दशनाम दिगम्बर । नमो शेष सोफी जु नमो जैनी सेतम्बर । नमो बोध शिव शक्ति, नमो द्विज निगम उपासी। नमो महन्त विरकत, नमो वैकुण्ठा-वासी। विष्णु वैसनों वेद गुरु, तारक तीनों लोक के। ये षट्-दरशन पुजि खलक में, जन राघो हंता शोक के ॥७५५ इति श्री जीवन दरशन समाप्त ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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