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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [२१५ राघो कबि कोबिद म्हंत संत स्यंधजल, मेरो उनमांन अंसौ डांग मधि डोहरा ॥५४५ मम गुर माथे परि स्वांनी हरीदासन है, प्रम गुर स्वामी प्रहलाद बड़ी निधि' है। स्वामी प्रहलादजू गुर बड़े सूरबीर, नांम स्वामी सुंदरदास जारण सारी बिधि है । तास गुर दादूजी दयाल दिपियर सम, सो तो त्रियलोक मधि प्रगट प्रसिध्य है। स्वामी दादूजु के गुर ब्रह्म है विचित्र विग, राघो रटि राति दिन नातो प्रनती वृध्य है ॥५४८ साखी दुगध गऊ को लीन है, अस्त मास तजि चाम। ज्यौ मराल मोती चुग, त्याग सीप जल ताम ॥१ जौ अंतिज प्राभूषन सजै, नख-सिख वार हजार।' तऊ हाटक हटवारे गये, मोल न .घटै लगार ॥२ त्यूं प्रसिध्य पंचूं बरण, अन्य न भक्ति उर जास के। तिन चरनन की चरणरज, मनि मस्तक राघोदास के ॥३॥५४६ उर अंतर अनभै नहीं, काबिन पिंगुल-प्रमारण। मैं चरिण बीरण सिलोकीयौ, कबिजन लोज्यौ जाण ॥४ अक्षर जोड़ि जांणों नहीं, गीत कबित: छंद न।। सिसु रोटी टोटी कहै, जननी समझै . सैन ॥५ भूलि चूकि घटि बढ़ि बचन, मो अनजांनत निकसियो। रांम जांरिण राघो कहै, संत महंत सब बकसियौ ॥६॥५५१ छंद प्रबंद अक्षर जुरहि, सुनि सुरता देदादि । उक्ति चोज प्रसताव बिन, बक्ता बकै सु बादि ॥७ बालक बहरौ बावरौ, मूरख बिना बिबेक । बार कुबार भलौ बुरौ, इनके सबही येक ॥८ हूं अजांन यौँ कहत हूं, कबिजन काढ़ौ खोरि । राघव अरजव अरज करै, सबहिन सूं कर जोरि ॥६॥५५१ १. निध्य । २. विध्य । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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