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राघवदास कृत भक्तमाल टीडा मेडक भाड भृग सरकि, सरनि उन पुनि गह्यौ।
त्यूं राघव रचि पचि रसन मम, भोर मिति भृति कृत कह्यौ ॥५४२ रदय नौस निवासिन दीब निरंतर, स्यंध सूं सोत मिलेहि रहैं हैं। छंद जैसव चंद चकोर कमोदनि, अमृत कौ पुट पान गहै हैं।
कुंज अकास बचे बिचि बारिक, श्रुत्तिक द्वारि सतोष लहै हैं। राघो कहै गुर की लछि नृमल, निर्पखि रामहि राम कहै हैं ॥५४३ पूरण भाग उदै जब होतह, ताहि दिनां सत-संगति भावै। साध रु बेद को भेद सुने बिन, कोटि करौ हिरदै बुधि नावै । मुंडत केस जनेउ जटा सिर, ज्ञान बिनां बिसरांम न पावै । बैठे ते ब्याधि गछेन कछै' कछु, राघौ कहै मन कौन सूं लावै ॥५४४ पूरण भाग बिनां भृति को कृत, कौंन लहै गज ज्ञान मुदा के । संगति सार बिचार बड़ी निधि, मांट भरे मधि स्वांति सुधा के। हाथि चढ़े धन धांम सु धीरज, बीरज बज्र जमै सुबधा के।
राघो कहै जस जोग समागम, संत कौं अानंद रूप उदा के ॥५४५ मनहर बीन कछू जाने नांहि जानत है बीनकार,
प्रतक्ष बजावत छतीत राग रागरणी। पांख को परेवा करै बाजीगर बाजी मधि, . जेवरी सूं जुलम दिखावै नाग नागणी । दंपति अनेक दाव करत उगव बहु,
- पति जांहि मांनै सोई सदन सुहागरणी । राघो कहै रोसि जिन मानौं कोई कबिजन,
- राम रथ बैठे तब देत बाग बागणी ॥५४६ प्रक्षर अरथ तुक जाण व्यास सुक मुनि, ... मैं का जाणौं ग्रंथ करि मूढमति छोहरा। प्रावत है सकुचि बड़ौं सौं बकि दीन्ही धीठ,
दुरै न दुकांन कूर कारीगर लोहरा । महुर रुपया नग ख्वार टकसार बिन, । लेत परसाइ ताहि साहूकार सोहरा।
१. (जा पन्न हो)। २. (सूरा तन धीर)। ३. (अर्थ)। ४. नम, नरा।
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