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________________ चतुरदास कृत टीका सहित छ [ २४३ भोग छतीस कीये दुरजोधन, भाव बिनां भुगते न बिधाता । येकक भाव इकोतर से तजे, बिद्र के कौन उतारें है पाता । साग के तहि भाग उदै भयौ, कृष्ण मिले त्रिये - लोक के दाता । कहै हरित के गाहक, प्रीति बिनां कुछ ' नेह न नाता ॥५३८ अरिल छ १. कछ । अधिकार श्रवन सुनि साध कौ, प्रदभुत कोई न मांनियौ ॥ श्रहं भक्त श्राधीन, कह्यौ हरि दुरबासा सौं ।' धू प्रहलाद गयंद, सेस सिवरी सरितासौं । पांडुन के जगि कृरण, अंघ्रि सुचि भूठि बुहारी । चंद्रहास बिष मेटि, राज दे विषया नारी । परचा कलि महि बिदत बहु, श्रासतिक बुधि उर प्रांनियौ । अधिकार श्रवन सुनि साध कौ, प्रदभुत कोई न मांनियौ ॥ ५३६ क्यूं दुरायें कठ गहि ठांवो साल सराफ, दरबि खोटो कौ Jain Educationa International दाई श्रागें पेट, ज्यूं निजरबाज निस्तू, सम कर राग के भाग, यौं साध सबद कौं पेखि के, जन राघो यौं हंस ज्यूं, arat ग्रंथ गमि बिनां, सुनौं कबि चतुर बिनांनी । रप्यौ पांनी । की किर्ची । सरवर कौं सर मांझ, भिरा भरि सोवन भई सुमेर, ताहि कंचन गणपति कौं इक साखि, गिरा दे सरस्वती अरची । सूरजबासी ससि दसी, कलपबृछ कौं धरि धजा । स्थंघ खोज सेवत चढ़ी, जन राघो गज मस्तक श्रजा ॥५४१ अन लह माइ रु हंस, गरुड गोबिंद कौ श्रासन । लघु खग श्रौर अनेक, उड़हि पंखी आकासन । सत जोजन हनवंत, कूदि गयौ सबका गावै । मृग चीता मृगराज छल, और पै फाल न श्रावै । दुरें | करें । खरौ । गुनीजन गरौ । गुनी बहुतर? चाल रहि । खीरनीर निरनौ करहि ॥ ५४० २. बहुत चरचाल रही । ३. सब को । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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