________________
२४२
राघवदास कृत भक्तमाल
कांसी में कबीर कसि बांधि डारयौ हाथी प्रागै,
___ स्यंध रूप धारि के दहारचौ मुटभेर सौं। भीर मै भगत्त काज बहत बिरद लाज,
धूसे कीन्हे अटल बघायौ येक सेर सौं। प्रगटे प्रहलाद काज खंभ सू नृत्यंघ रूप,
.. राघो हत्यौ हिरनांकुस हाथ की थपेर सू ॥५३३ गरीबनिवाज सू अवाज कीन्हीं येक बेर,
पाये गज काज को छुडायो येक छिन मैं। द्रोपती की राखी पति अंबर बढायौ प्रति,
दूसासन दुष्ट खिसांनौं परयौ मन में। कासी मै कबीर काज बालदि मै ल्याये नाज,
देखे प्रभु दीनबंधु असे पूरे पन मै। राघो कहै पंडुन सूवोर ज्यू निबाही प्रीति,
राखे केऊ बार करतार राति दिन मै ॥५३४ दीनबंधू दीन काज दौरे गज टेर सुनि,
प्रांनिक छुड़ायौ उन राख्यौ त्रिय ताप सौं। बोगरयौ बिटप दिज सोऊ गयौ लोक निज, . अजामेल अंतकाल नांव के प्रताप सौं। सूवा कौं पठावते सरीर सुदि भूलि गई,
गनिका बिवान चढ़ी गछी हरि जाप सौं। राघो अंबरोस बेर भये हैं दुबासा जेर,
कीयौ है अधिक जगदीस जन प्राप सौं ॥५३५ इंदव पंज रही परमेश्वर गावत, दादूदयाल की देखौ रे भाई।
काजी नै कौंस दई खिजि के मुखि, स्वामी न दूखे सजा उन पाई। सांभरि सात महौछिन को दल, सातों ही ठौर भये सुखदाई। . राघो रक्षा करी राज सभा मधि, पौरि उभं गज लागौ है पाइ ॥५३६ भारत मै भृति राखि लीये, पंडवां हरि हेत सौं खेत जितायो । जन को रिपु राम हत्यौ, हिरनांकुस प्रांन सौं प्रहलाद लगायौ। टेर सुनी गज को इतनी, अर्ध नांव की लेत ही रामजी प्रायो। राघो कहै द्रोपती भई दीन सु, कीन्हीं कृपा हरि चीर बढायौ ॥५३७
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org