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भूमिका
[ व मो उर करंक काठ ज्यू वीझ, का जाणों हरि का विधि रीझै ॥३॥ जन राघो विरहनी विललावे, थाको रसना रांम कब आवै ॥४॥
राग-नट नारायण अब तौ भाई बनी जिय मेरे ! चित चकचाल काल के डर सें, कर्म दसौं दिस फेरै ॥टेक॥ त्रिगुरणधार पार परमेश्वर, चौथे गुण थें नेरे ॥ दीनानाथ हाथ दै अबक, करुणा करि करि टेरै ॥१॥ भयो भैकंप स जौनी सुनि के, दइया न्याव नवरै ॥ दाँवरणगीर दर्द नहिं समझे, लगे ही रहतु है कैरे ॥२॥ परिहरि पाप परमारथ कर लै, जो कछु हाथि है तेरे ॥ विन जगदीश जक्त मधि जोख्यौ, जैहै जम के डेरे ॥३॥ तीनों लोक सकल जल थल मधि, बंधे जीव मैं मेरे ॥ राघोदास राम अघमोचन, रट ज्यौं तोहि निवैरे ॥४॥
राग-सारंग ऐसो राम गरीबनिवाज है ! . भक्त वत्सल सरणाई समरथ, सारण जन के काज है ॥टेक॥ प्रादि अन्त मधि अखंड अहोनिशि, अनन्त लोक जा कौ राज है। सुर नर असुर नाग पशु पंछी, देत सबनि जल नाज है ॥१॥ रिधि सिधि भक्ति मुक्ति को दाता, पूर्णब्रह्म जहाज है। निर्बल को बल निर्धन को धन, वहत विरद की लाज है ॥२॥ कर्ता पुरुष अनातम प्रातम, सन्तन मध्य समाज है। राघौ तन मन करि नौछावर, मिलन महातम प्राज है ॥३॥
राग मलार मौज महाप्रभु तेरी हो ! खानांजाद इन्द्र से अधिपति, अष्ट सिधि नव निधि चेरी हो ॥टेक॥ तीन लोक ब्रह्मांड पचीसौं, एक शब्द सर्व साजे। सुर नर नाग पुरुष मुनिपतनि, रचि रचि रूप निवाजे ॥१॥ सूरति अनन्त सुभाव सुरति प्रति, शब्द भेद बहु वाणी।। मूर्ख चतुर निर्धन धनवन्त किये, करता पुरुष विनारणी ॥२॥
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