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________________ २३८ ] राघवदास कृत भक्तमाल छपे प्राये हैं असाढ़ मास बरखा भई है पास, बाहन कौं नाज नास चिता मनि साले हैं। मटकी बताई अन भरी सो दिखाई सव, लीये' पाव बैंचि सव अचिरज न्हांले हैं ॥५१७ नालेरी प्रमान सूके टूकरे भिजोइ राखै, पांनी घोरि पोवै स्वाद षटरस त्यागी है। रिधि सिधि अवै बहु संतन खुवावे, प्रमारथ बतावै अप स्वारथ न मांगी है। आत्म कवल जहां ग्यांन को प्रकास कीयौ, हिरदै कवल तहां ब्रह्म लिव लागी है। प्रमानंद पानंद सु पायौ बनवारी गुर, __ सेवै संत चरण सदा ही बड़भागी है ॥५१८ दादू दीनदयाल के, सिष बिहारणी प्रागदास ॥ ताकै सिष दस भये, दसौं दिसिही कौ गाजै। १रांमदास बड़ सिष, फतेपुर अस्तल राजे । २केसौदास ३निरांनदास, ४बोहिथ ५धर्मदासा। हरीदास ७हरदास, प्रमारणद हटीकू पासा। १०टीको माधौदास कौं, सब दीयौ डोडपुर मांहि तास । दादू दोनदयाल के, सिष बिहांणी प्रागदास ॥५१६ दादूजी के जगनाथ, जाकै है बलरांम निधि ॥ दिपे सहर अांबेरि, राइ महास्यंघ नवाये। भजन तेज प्रताप, प्रगट प्रचे दिखराये । जिते सचिव उमराव, रहै कर जोरें ठाढ़े। करवायौ मध धांम, पूरबिया सेवग गाढ़े। चरण सरण जे पाप रे, तिनके कीये काज सिधि । दादूजी के जगनाथ, जाकै है बलरांम निधि ॥५२० माखू दादू दास को, जाकै बेरपीदास जन ॥ श्रगुन भक्ति की भाव, नांव निति प्रिति मन भायौ। १. मये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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