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________________ छेद चतुरदास कृा टीका सहित । ०३७ बड़ो पुरष पुरसा' रचव, या प्रांवानेरी अजब उठाण । जन राघो प्ररणम पछोपै वो, तुलछीदास तपै जिम भारण ॥५१३ अब जगजीवन के पाटि है, दिपत दमोदरदास भरिण ॥ ध्यांनदास धनि पिता, आन तजि हरिगुण गावै । भ्राता कान्हड़दास, सहित हरि भक्ति बढावै । सकल पराकृत संसकृत, कवित छंद गाहा गूढ़ा। खीरनीर निरवारि, करै अरथन का कूढा। यम राम जपत राघौ कहै, सकल कुटंब की गई सु बरिण। अब जगजीवन के पाटि है, दिपत दमोदरदास भणि ॥५१४ मनहर नारांइन दूधाधारी घड़सी गुर पाय भारी, राजा जसवंत असवारी भेजी भाइये। बैलन लीये चुराइ भैल कैसे चलै पाइ, चढ्य करि कह्यौ जु निरंजन चलायये। भैल चली पावै अचिरज सब पावै, राजा सनमुख ध्यायौ हुलसायो मन भाइये। अदभुत कोनौं नृप चीन्हीं द्रिष्टि प्रापनी, सु परचौ प्रतक्ष यह संतन सुनाइये ॥५१५ छौ दादू दीनदयाल के, घड़सी घट हरि भजन कौं ॥ घड़सी के गोविंददास, कुल नामां बंसी। रची डीडपुर साल, भक्ति बल है हरि अंसी। बांणी करी रसाल, ग्यांन बैराग चितावनि। साखि सबद मै राम, नाम गुन और न भावनि । परचा दे परकाज कौं, जांनत तन प्रभु संजन कौं। दादू दीनदयाल के, घड़सी घट हरि भजन कौं ॥५१६ मनहर रतीयाज गांव देस जंगल मै हतौ संत, प्रमानंद रहै दया सोल सत पाले हैं। परयौ है दुकाल देस मटकी भरी ही सात, बाबा अन सौंपि लोग मालवा कौं चाले हैं। १. पुरासार। २. (प्रभाव)। ३. प्रछ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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