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________________ २३६ । राघवदास कृत भक्तमाला ग्यांन जोग बैराग मग, बरणे मन बच काय करि । दादू केरा पंथ मै, चैन चतुर चित चरण हरि ॥५०६ इंदव दादूदयाल गोपाल प्रताप लें, चैन के अन यौँ ग्यांन उपन्नौं । छद पाठहु जाम अखंडत येकहि, यौं उर मै गुर जाप जपन्नौ । बीणि लीयो बित ब्रह्म बड़ी निधि, देख्यौ सबै जग झूठ सुपन्नौ । सास सबद सुरत्ति बिचारत, राघो कहै धुनि ध्यान निपन्नौ ॥५१० मनहर दादूजी के पंथ में सराहिबे जुगति जति, छंद नांव को लिहारी भारी निरांनदास मांगल्यौ । सोभित सकल अंग रोम रोम नांव नग्ग, ब्रह्मा विद्या-वीदड़ी पहरि भयौ प्रांगल्यौ। भजन कौ पुंज गलतांन लग्यौ रांम रंग, स्यांम काम सूरबीर मोक्षपद नांगल्यौ । प्राग्याकारी असिल मिसल भजनीकन की, राघो रूड़ी भांति सेति जाइके रांमै रल्यौ ॥५११ मोहन दफतरी के दिपत पछोएँ दीप, __चत्रदास चैतनि परबीन परसिधि है। रमिजी को बासौ जाकी रांमसाला मध्य बृध्य, विद्या उपविद्या ताकै क्रम मधि रिधि' है। सांखिजोग क्रमजोग भजन भगति-जोग, विद्या बेद सास्त्रहि जारणे सारी बिधि है । राघो कहै राति दिन रांम न बिसारचौ छिन, तन मन जित निरपक्ष बड़ी निधि है ॥५१२ दादू गुर दसहूं दिसि, प्रगट धर्म मोरधी मोहनदास ॥ तास पाटि थिर थप्यो धुरंधर, जन गरीब गोविंदनिवास । सास पछोपै श्रबगि सिरोमनि, हरि प्रताप उपज्यौ प्रमहंस । भजि भगवंत भरम कर्म प्रहरि, कीयो उजागर ऊंचो बंस । १. रिध्य । २. विध्य। ३. निध्य। ४. थरप्यो। (धर्म को धोरी)। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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