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राघवदास कृत भक्तमाला ग्यांन जोग बैराग मग, बरणे मन बच काय करि ।
दादू केरा पंथ मै, चैन चतुर चित चरण हरि ॥५०६ इंदव दादूदयाल गोपाल प्रताप लें, चैन के अन यौँ ग्यांन उपन्नौं । छद पाठहु जाम अखंडत येकहि, यौं उर मै गुर जाप जपन्नौ ।
बीणि लीयो बित ब्रह्म बड़ी निधि, देख्यौ सबै जग झूठ सुपन्नौ ।
सास सबद सुरत्ति बिचारत, राघो कहै धुनि ध्यान निपन्नौ ॥५१० मनहर दादूजी के पंथ में सराहिबे जुगति जति, छंद
नांव को लिहारी भारी निरांनदास मांगल्यौ । सोभित सकल अंग रोम रोम नांव नग्ग,
ब्रह्मा विद्या-वीदड़ी पहरि भयौ प्रांगल्यौ। भजन कौ पुंज गलतांन लग्यौ रांम रंग,
स्यांम काम सूरबीर मोक्षपद नांगल्यौ । प्राग्याकारी असिल मिसल भजनीकन की,
राघो रूड़ी भांति सेति जाइके रांमै रल्यौ ॥५११ मोहन दफतरी के दिपत पछोएँ दीप,
__चत्रदास चैतनि परबीन परसिधि है। रमिजी को बासौ जाकी रांमसाला मध्य बृध्य,
विद्या उपविद्या ताकै क्रम मधि रिधि' है। सांखिजोग क्रमजोग भजन भगति-जोग,
विद्या बेद सास्त्रहि जारणे सारी बिधि है । राघो कहै राति दिन रांम न बिसारचौ छिन,
तन मन जित निरपक्ष बड़ी निधि है ॥५१२ दादू गुर दसहूं दिसि, प्रगट धर्म मोरधी मोहनदास ॥ तास पाटि थिर थप्यो धुरंधर, जन गरीब गोविंदनिवास । सास पछोपै श्रबगि सिरोमनि, हरि प्रताप उपज्यौ प्रमहंस । भजि भगवंत भरम कर्म प्रहरि, कीयो उजागर ऊंचो बंस ।
१. रिध्य । २. विध्य। ३. निध्य। ४. थरप्यो।
(धर्म को धोरी)।
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