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राघवदास कृत भक्तमाल
१२रांम सायर रत रांम सू, सुतै सिधि ये जानिये। उत्तरदिस उज्जल भक्त, बारह भये बखांनिये ॥४६४ महंत राघवा अंध भयौ, तिहूं लोक उजागर । पाटि द्वारिकादास, बड़ौ सिष धर्म की प्रागर । अरु टीकू हीरा सु, राम-रस पीय मतिवारा। येकहूं छांनां नाहि, स्वामी लोहा गरवारा। जन तिलोक पूरन बैराठी, कटि हरिया कृष्णदास भनि । राघो राम न बीसरै, जिनि बड़ौ सरन गह्यौ संत धनि ॥४६५ कृष्णा जाडौ संत, लाल गुलांम भनीजै। बाबा लाल सु उतर-खंड मै धांम सुनीजै । लालदास बहु बरणि, गाइ जस जोध प्रमत्ता। सहर प्रागरे माहि, कीयो प्रतिहास सपत्ता। राघो रहरिण सराहिये, कहां लौं बरनौं राम दल । भीर परें भाजै नहीं, यौं भगतन के भगवान' बल ॥४९६ ग्यांनी गदि गलतांन अति, अखौ येक गुजरात मै ॥
सोनीकुल महि जनम, प्रात्मा को अनभी उर। ससा-लिंग मृग-नीर, जगत असौ जान्यौं धुर । जसवंत राजा सुन्यौं, गयो सो आप तास पहि।
गोष्टि करी अघाइ, जाइ बनराज प्रासनहि । भक्ति ज्ञान बैराग सम, अद्वीत' दिखायौ बात मै। ग्यांनी गदि गलतांन अति, अखौ येक गुजरात मै ॥४६७ ये पुनि पुनीति प्रमार्थी, सब सदन प्रमानंद साह को ।
करि उद्यम उदार, उ देही करी उजागर । पूजि भक्त भगवंत, भक्ति को थरप्यौ प्रागर। माहौरा तू रामजी, बालकृष्ण नृस्यंघ निधू ।
सकल कुटंब धर्मात्मां, लघु दीरघ बेटी बधू । राघो राम निवाजि है, प्रभु करि है तन निरबाह को । ये पुनि पुनीति परमार्थी, सब सदन प्रमाणंद साह कौ ॥४६८
१. भगवंत। २. (हाथ मिटावता जान)।
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