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________________ २३२ ] राघवदास कृत भक्तमाल १२रांम सायर रत रांम सू, सुतै सिधि ये जानिये। उत्तरदिस उज्जल भक्त, बारह भये बखांनिये ॥४६४ महंत राघवा अंध भयौ, तिहूं लोक उजागर । पाटि द्वारिकादास, बड़ौ सिष धर्म की प्रागर । अरु टीकू हीरा सु, राम-रस पीय मतिवारा। येकहूं छांनां नाहि, स्वामी लोहा गरवारा। जन तिलोक पूरन बैराठी, कटि हरिया कृष्णदास भनि । राघो राम न बीसरै, जिनि बड़ौ सरन गह्यौ संत धनि ॥४६५ कृष्णा जाडौ संत, लाल गुलांम भनीजै। बाबा लाल सु उतर-खंड मै धांम सुनीजै । लालदास बहु बरणि, गाइ जस जोध प्रमत्ता। सहर प्रागरे माहि, कीयो प्रतिहास सपत्ता। राघो रहरिण सराहिये, कहां लौं बरनौं राम दल । भीर परें भाजै नहीं, यौं भगतन के भगवान' बल ॥४९६ ग्यांनी गदि गलतांन अति, अखौ येक गुजरात मै ॥ सोनीकुल महि जनम, प्रात्मा को अनभी उर। ससा-लिंग मृग-नीर, जगत असौ जान्यौं धुर । जसवंत राजा सुन्यौं, गयो सो आप तास पहि। गोष्टि करी अघाइ, जाइ बनराज प्रासनहि । भक्ति ज्ञान बैराग सम, अद्वीत' दिखायौ बात मै। ग्यांनी गदि गलतांन अति, अखौ येक गुजरात मै ॥४६७ ये पुनि पुनीति प्रमार्थी, सब सदन प्रमानंद साह को । करि उद्यम उदार, उ देही करी उजागर । पूजि भक्त भगवंत, भक्ति को थरप्यौ प्रागर। माहौरा तू रामजी, बालकृष्ण नृस्यंघ निधू । सकल कुटंब धर्मात्मां, लघु दीरघ बेटी बधू । राघो राम निवाजि है, प्रभु करि है तन निरबाह को । ये पुनि पुनीति परमार्थी, सब सदन प्रमाणंद साह कौ ॥४६८ १. भगवंत। २. (हाथ मिटावता जान)। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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