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चतुरदास कृत टोका सहित
यौं बलिदाऊ कलि मैं करी, समन ज्यू सापुरस' गति ॥ कुलसं तांतू तोरि, फौरि घर लई जलैबी। संतन को मुख पूजि रह्यौं, अब छैनी है गैबी। सौंज सवाई बढी, रामजी रीति बिचारी।
जग्य पुरस जगदीस, प्रगट रस राख्यौ भारो। जन राघो उपजी राति इम, मन बच क्रम कीयो धर्म अति ।
यौं बलिदाऊ कलि मैं करी, समन ज्यूं सापुरस गति ॥४६६ मनहर मसकति करत मगन मतिवारौ भयौ, बंद
नांवकी लगनि कीन्ही कोंन्हां लड़ बावरौ। येक निसा निकटि निसंक रही बाई येक,
भोर भये सोर भयौ चोर है तूं राव-रौ । ज्वाब कीन्हौं जुलम जगतपति जाणे भेद,
___ भरि पाये थांन कान्हा पोवं असैं डावरौ। राघो कहै परचौ प्रचंड भयौ जांण्यौं जब,
बीनती करत सब गांव' दोष छावरौ ॥५०० छपै दादू दीनदयाल के, येते पोता सिष प्रसिध गनि ॥
प्रथम १फकीर २प्रहलाद, ३खेम छीतर सुबिचारी। ४कल्याण ५केवल ६चैन, ७नरांइन च्यारि सु भारी। प्नृस्यंघ दमोदरदास, १०गोविंद ११बेरपी ब्रह्मबंसी।
१२दास बड़ौ १३गोपाल, १४अमर १५बालक हरि अंसी । १६चत्रदास राघो उभ, १७मोहन १८भीख १६गरीब जन । दादू दीनदयाल के, येते पोता सिष प्रसिध गनि ॥५०१
__फकीरदासजो को मूल भनहर दादूजो दयाल कोन्ही दया निज नाती परि,
फहम फकीरी कौ फकीरदास पायौ है। प्राये कौं अजब दत रिधि सिधि सील सत,
येतौ अंस कृपा मधि अन आप पायौ है।
१. पुर संगति । २. जपे। ३. (चोरी परमार्थ)। ४. (उपाय कर गुदरान छ)। ५. (साच)।
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