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________________ चतु दास कृत टीका सहित [ २३१ राघो सुनत तुरंग तन पलट्यौ, तसकर सुन्यौ बिचार है। संत त्रेता द्वापर जुग्ग सूं, कलू कीरतन सार है ॥४६० कउवा तजत किराट कौं, गई अपसरा बरन करें। भक्ति करत इक भूप, सही कसरणी अति भारी। तब भेटे भगवान, प्राइ त्रिभुवन के धारी। नारि पलटि नर भयो, सीत परसादी पाई। भांड भक्त परतक्ष, नृपति पूज्यौ निरताई। कुवर कठारा की कथा, जन राघो कही जग तरन कौं। कव्वा तजत किराट कौं, गई अपसरा बरन कौं ॥४६१ लाहौ मनिखा देह को, लालमती लीयो लाल भजि ॥ प्रिया प्रीय तें प्रेम, प्रेम कालिद्री तट तें। कुंज गली ते प्रेम, प्रेम अति' बंसोबट तैं। जन गोकल ते प्रेम, प्रेम गिर गोवरधन तें। प्रेम मधुपुरी अधिक, प्रेम घन बारे बन हैं। बृदाबन मै जा बसी, सो नगरी घर माल तजि । लाहौ मनिखा देह को, लालमती लीयौ लाल भजि ॥४९२ , दक्षण-देस दूजौ · कृष्ण, पंडित कृष्णोजी सही ॥ जाके पग के मांन, भाव उर वही भावनां। कृष्ण-बसन अरु कृष्ण, जपन पुनि कृष्ण चावनां। कृष्णहि को उपदेस, कृष्ण सब मांहि बतावै । कृष्णहि सूं रतमत, कृष्ण बिन और न गावै । विबेक ग्यांन निरबेद, निज भक्ति बिसतरी वा महो। दक्षन-दिसि दूजो कृष्ण, पंडित कृष्णौजौ सही ॥४६३ उत्तरदिसि उज्जल भक्त, बारह भये बखानिये ॥ श्थंभरण ३द्वंदूरांम ३कलंकी कलंक उड़ायौ। बहुरि ४बलंकीरांम, ५सालू दूध चितायो। ६रांमराइ हरिराय, राम दादू दिल दरसे। हरांम मालू १०राम रंग, पुनह दादू ११प्रभु परसे। १. प्रात। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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