________________
२२८ ]
छपै
छपै
भूप सुनी खुसी होत हुती रिस, गांव दये सु उतारत मै सौ । कागद भेजि दयो बरजौ मति, दीपकुवारि करौ मन
सौं ||६२३
राघवदास कृत भक्तमाल
१. साधन ।
मूल
तन मन धन श्रपि के नच्यौ ॥
गिरधरंन ग्वाल गोबिंद संगि,
सूं
घर मधि घरिनि उदार, सदा मन पूरौ समै सदन धन त्यागि, बचन सति पति मात-पिता की रीति, पुनि पुत्र नहीं कतहूं
न
भक्ति सबीरज मंत्र परं, जन राघो रिभये रामजी, मालपुरें मंगल रच्यौ । गिरधरन ग्वाल गोबिंद संगि, तन मन धन अपि कैं नच्यौ ॥४८४
टोका
इंदव संतन सेव करें गिरधरन सु, देखि सुखी हुत है रति साची । छंद त्याग करै बपु खोलि पिवं पग, रीति सबै अनि नाहि न काची । बिप्र कहै सब बात सुहात न, त्याग करौ जन फेरि न राची । होइ प्रभाव जको मति लेवहु, जांनत हूं पर भावन बाची ||६२४
Jain Educationa International
राख्यौ ।
भाख्यौ ।
पाली ।
खाली ।
मूल
गोपाली जसमति समां ॥
सेवत ।
साधू' सेवत सुष्टमति, दसधा रस दिल मांहि, प्रभु पतिव्रत सौं कलि कालिय तैं रहत, संत कौं सर्बस देवत । नृमल गिरा सुसील, सदा मोहन लै पागी । सुभ लक्षन सुभ कला, येक हरिजन रति जागी । अंतकरन बिसद महा भजन रसिक हिरदे जमां । साधू सेवत सुष्टमति, गोपाली जसमति समां ॥४८५
संतन की सेवा समझि, रामदास रतमत करी ॥ सुहिद सांत सम सहजि, गिरा श्रर्जव प्रति श्रांनन । सुरज साधू पेखि, खिलै उर अंबुज मंगलचार उछाह, सहित भगतन कौ पद पखारि प्रनांम, रचत, नांनां बिधि
कॉनन ।
For Personal and Private Use Only
•
पूजन ।
बिजन ।
www.jainelibrary.org