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चतुरदास कृत टीका सहित
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बसिबो बछ बन प्रेम पन, उभै पदन परि मति खरी । संतन की सेवा समभि, संमदास रतमत करी ॥४८६
टीका
इंदव संत सुनी इक भक्तिहि देखन, प्रावत रांम हि दास बतावो । छंद आप उठे पग धोइ लयो जल, श्रावत रांमहि दास रहावौ । भोजन पांन करो उन ल्यावहु, रांम हि दास यहै चलि पावौ । पाय परयौ जन भाव भयौ मन, मात नहीं तन हौं प्रति चावौ ||६२५ ब्याह सुता हि रच्यौ घर मैं वड़, लै पकवान सुसाल धरे हैं । चांक गुली लगाय रहे सुत, खोलि लयो अनि नांहि डरे हैं । साध पधारत पोट पठावत, जाइ जिमावत भाव भरे हैं । पूजत हैं सु बिहारीय लालहि, मो मन संतन भक्ति हरे हैं ।। ६२६
मूल
रांमराइ दिज सार सुत, प्रभु प्रीति पनपा रही ॥ भजन जोग निरबेद, बोध दिढ़ हृोदे बिचारे । लोभ क्रोध मद काम, मछर मोहादिक मारे । श्रवन मनन गुनगांन, मुदित सुख सागर न्हावे । साध सूर परकास, हिदौ श्रंबुज बिगसावे । वा पाघ परी पृथ्वी पर दोष पिसरणता धार ही । रामराइ दिज सार सुत, प्रभु प्रीति पनपा रही ॥४८७ भजन भाव दातारपन, यह निबह्यौ भगवंत कौ ॥ स्यांमा-स्यांम बिहार, सार हृदं में दरसे । रसिक राइ जस गाइ, धाइ प्रभु पद सद परसै । प्रांत रहत इक भक्ति, संपरदा मधि निहारी । कर्म सुभासुभ डारि, धारि उर प्रीति बिचारी । सुवन सरस माधौ तरगौं, स्वांग भाइ हरि कंत कौ । दातारपन, यह निबह्यौ भगवंत कौ ॥४८८ टीका इंदव सूरज के भगवंत दिवांन, महा बन - बासिन सेव करी है । छंद साध गुसांई र ब्राह्मन को, ब्रज-बासिन दे धन प्रीति खरी है ।
भजन भाव
+ टिप्पणी - जोतष |
छपै
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