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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ २२७ टोका इदव जानन कौं पनस्याचित प्रनित, दांम तिलक्कही द्यात' दुहाई। छंद जीवन कौं सब दूरि करै जन, मांनत प्रांनहु मारि डराई । लै भगवान बिसेख करे तन, भक्ति भयौ उर रीति सुहाई। भूपति रीझि दई मथुरा बसि, मंदिर श्रीहरिदेव कराई ॥६२१ गोविंद गलि सोहै सदा, संत रतनमय दाम ॥ सुष्ट सहज घनस्यांम, धांम रतमत उत्म अति । नांनां वत जन प्रीति, रीति यह नीति सुघर-मति । ह्रस पीन सुर सरल बाक, कहि सव मन-भांवन । दिग दूनी बिसवास, साध का परचा गावन । दास नरांइन गोपि जे, कीये प्रगट गुन नाम । गोबिंद गलि सोहै सदा, संत रतनमय दाम ॥४८२ मघवानंदन भक्त नृप, परिजा प्रतिपाल भलें ॥ कमला सहित लड़ात जगत, स्यंघ भजन भाव करि। लक्षमीपति आधीन, कोये उत्म रसि उर धरि । ताकी कीरति करत कठिन, कलिजुग के राजा। बचन न लोपै भृत्य, सूर सांवत सुख साजा। मारतंड भुजदंडा सम, अरि अंधेर दोऊ पुलें। मघवानंदन भक्त नृप, परिजा प्रतिपालैं भलें ॥४८३ टीका इंदव सेवत है लक्षमी सु नरांइन, यौं पन संगहि राखत डोला। छंद जावत है जुध कौं तव आगय, नांतरि पूठि रहै यह तोला। जैसिंघ सो जसवंत सुनी जल, ल्यावत सीस लखै यह छोला। जात दिली सु बजारहि प्रावत, देखि परे पग थे निरमोला ॥६२२ जैसिंघ जूहि कहै मम नेह न, है तुम्हरी भगनी उर जैसौं। दीपकुवारि बड़ी हरि भक्ति सु, क्यूंक भजें हम नांहिं नवैसौ। १. ह्यात । २. मराइ। ३. हुस । टिप्पणी - सूरवीरण। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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