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भूमिका प्रांन धर्म दिन चारि इरंड को मौरनो। परि हाँ ! राघो किती बुनियाद वांन को दौरनो ॥१९॥
यह चहल पहल दिन चारि दुनी की चिलक है। कनक कामनी रूप काम की किलक है।
जन राघो रुचि राग कुरंग उर सर सह्यो। परि हाँ ! एसै जग को अग्नि अज्ञानी नर दह्यौ ॥२६॥
न्यायमार्गी अङ्ग हिन्दू के हद वेद रहै मर्याद मैं। खंड न खोटो खाय वस्त नहिं वाद मैं ॥
तज प्रसार गहि सार राम रस पीजिये। परि हाँ ! राघो जुक्ति विचारि जोग जिग कीजिये ॥४॥
मुसलमान मुस्ताक सरै के हक चले। हाथ न छुवै हराम रहै उजले पले ॥
हक हलाल टुक खुर्दनी जिकर फिकर विसियार । परि हाँ ! राघो खडा रहीम दर बन्दा है हुशियार ॥५॥
ज्ञान उपदेश को अङ्ग जैसी संगति कर तिसे फल प्राखिर पावै । कहत सयाने साध साषि पुनि प्रागम गावै ॥
मारण पडही मति जगत मैं जाग भागि जिन व्है सतौ। परि हाँ ! राघो रही रुचि राम सूं रैण दिवस धरि द्रढ़ मतौ ॥५॥
ग्यानी गुण की रास निर्गुण सौं व्है रहे । गहै शील सन्तोष. काम क्रोधहि दहे ॥
खिझे न रोझे चाह चित्र को पेखरणौ । परि हाँ ! राघो हर्ष न शोक तमासौ देखरणौ ॥११॥
धर्म कसौटी को अङ्ग पलक खूब दिन दोइ सुनो सब लोइ रे। तन धन अपना नांहि विछोहा होइ रे ॥
सत करि सुणवे जोग यहै इतिहास रे। परि हाँ ! राघो वित उनमान वांटियो गास रे ॥२॥
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