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________________ २२४ ] राघवदास कृत भत्त.माल पुत्र भलौ धर्मदास कौं, भयौं प्रगट श्रीरंग' लग। कल्यांन लयो कन बीन के, सुजस सुगन हरि भजन जग ॥४७६ साधन के सतकार कौं, हरि जननी के निरमये ॥ श्रीरंग वाहव सुमरि, लगनि २लाखा कै लागी। मारू मुदित ३कल्यांन, ४सदानंद सदा सभागी। ५स्यांमदास लघु ६लंब, भक्त भजिये नृमल मन । ७चेता ग्वाल गुपाल, परस बंसीनारांइन । १. संकर सलाधि! उर प्रसन, करत प्रभु धर्म ये। साधन के सतकार कौं, हरि जननी के निरमये ॥४७७ स्यांम स्वांग पर भाग नै, हरीदास हिरदौ सुहृद ॥ प्रीति परम प्रहलाद, सिव रस म है सरनाई। देह दांन दधीच बाद, पुनि बलि सो राई । सीस दैन जगदेव, भजन पन मै बोकावता। तूंवर-बंस बिगास, साध सेवा निति भावत । पृथापुत्र* पीछे बड़े, अदभुत कहा जस जगत सद। स्यांम स्वांग पर भाग नै, हरीदास ह्रदो सुहद ॥४७८ टोका इंदव श्रीप्रहलाद सु आदि कथा जग, सौगुन हैं हरिदास सरीरै । है जगदेव समां रिझवार सु, तास कथा सुनियो सब धीरै । येक नटी गुन रूप जटी कहि, तांन कटी हस तौं नर भीरै। रीझि रह्यौ नृप देवत सीसहि, राखि अबै हमरौ यह बीरै ॥६११ दाहिन हाथ दयौ तुम कौंनहि, वाड़त भूप सु नीर बुलाई। नांच र गांन करयौ नृप रीझत, ले अब ल्यावहु बाम कराई। कोपि कह्यौ अपमान इसो कर, जीवन तौ जगदेव दिवाई। जासु गुनी दस देत दिखावहु, होत नहीं यह मोहि सुहाई ॥६१२ भौत कही निह मांनत ल्यावहु, जात भई मम चीज सु दीजे। काटि दयौ सिर सक्ति रख्यौ बपु, ढांकि रु प्रांनत नैन लखीजै । छंद ह जा १. श्रीलाल । २. (रथ)। ३. हाथ । सिंतसलाधि। (भजन पन पन यू)। *जुधिष्ठिर। (तत)। हंसता । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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