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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ २२५ दूरि करयौ पट देखि गिरयौं नृप, वात नहीं द्रिबि की क्यम कीजे । पांनि दयौ यम मो सिर' देवत, रीझि लई उनकी सुनि जीजे ॥६१३ रीति सुनी जगदेव सुता नृप, कैत पिता। सन मोइ न दीजै । भूप बुलाइ कही समझाइ, सुनौ यह राइ सुता मम लीजै। बार नट्यो सत जाइ हतौ कत, लेर चले मम लै मति छीजै । नैनन देखहु काटि र ल्यावहु, प्रांनि धरयो सिर फेरित रीझै ।।६१४ रीझि कही बिसतार सुनौ अनि, संतन सेव करै हरिदासा ।' साधन सू परदा न हिरदे सुख, भक्त रह्यौ इक पुत्रिय पासा। ग्रीषम की रुति सोत छता जुग, देहहि देह मिली सुधि नासा । प्रात भयें चढियो नृप ऊपरि, चादरि नांखि फिरयौ तरि बासा ।।६१५ दोउ जगे सखि चादरि लाजत, लेत पिछांनि सुता पित जानी। साधन ये द्रिग ऊठि चल्यौ नृप, प्राय परयौ पग बात बखांनीं। होइ सुचेत करौ बिधि संक न, दुष्ट सुनें नृप के कुट बांनी। निंदत है तुम हीय जरै मम, नांहिं डरौं अपनी सुखदांनी ॥६१६ भक्त कलंक लगै इम कैत सु. संतन को घटती नहि भावै । सर्म भई स बि छिटकावत, जीव बिचारि घनौं पछितावै । फेरि करे खुसी राखि लये, हसि, देत बड़ौ सुख स्यांम लड़ावै । भ्रात गुबिंद बजावत बंसिय, भूप कही मनमै नही ल्यावै ॥६१७ कृष्णदास कौं कृष्णजी, स्वैपद तें दये घूघरा ॥ मधुर चाल सुर ताल, गांन धुनि मान तान पुनि । रमत रंग द्रिय भंग, संग सम अंगरास सुनि । धुरपद अरु संगीत, बिरत रतनांकर गावत । स्यांमां स्याम प्रसन्न, रागमाला उर भावत । सुनार जाति खरगू अपति भक्ति भाप गुन सूं भरा। कृष्णदास की कृष्णजी, स्वपद तें दिये घूघरा ॥४७६. १. जोरि दयो सिर । २. प्रथ। (जयचन्द दल पांगलो धारा नगरी को)। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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