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________________ चतुरदास कृत टीका सहित श्रांई । कीयौ । सब सूं रह्यौ निराल, इंदु द्रुम साखा नांई । भारी गुन-गंभीर, सकल जीवन सम संत' सुजस प्रांनन सदा, अपजस कबहूं नां साध दया उर धारि प्रभु, कांन्हरदास लाहौ पापी कलि के जंत जे, केवलरांम कीये गुर संतन सौं बिमुख, नांव जगदीस न गांवें । बहुत इसे नर-नारी, खेंचि मारग सति लावै । उज्जल प्रीति श्रकांम, कनक श्ररु कांमनि त्यागी । सार- द्रिष्टि अज्ञान नसन, रहति करुणा के भागी । स्यांम स्वांग नवमां भक्ति, देत नांहि बोलै प्रसिद । पापी कलि के जंत जे, केवलरांम कीये बिसद ॥ ४७४ टोका इंदव धांमहि धांम कहै मम देवहु, ल्यौ हरि नांवहि सेव बतावै । छंद स्वांग धरें लखिये न प्रचारहि, पूजन की प्रभु रीति सिखावै । सागर है करुणां न सुने अनि बैलहि चोट दई सु लुटावै । ऊपरिई मगरां बिचि देखत, है सब ये कहि के समझावै ।।६१० छ ै १. सब । २. (नहीं) । मूल हरिबंस संत सेवा करें, द्रिव्य रहत बिस्वास हरि ॥ गांन गाथ सूं हेत, साधन पूजन प्रति खुरपा जाली न्याई, देत सर्बस ले करें नहीं बकबाद, सील सुमरन भजे अखंडत स्यांम, प्रातमि या श्रीरंग सीस गुर धारि कैं, प्रभू मिल्यौ भव सिंध तरि । हरिबंस संत सेवा करें, द्विबि रहत बिस्वास हरि ॥४७५ कल्यांन लयो कन बोन कैं, सुजस सुगन हरि भजन जग ॥ बिधि धारे । उचारे । न रहत पतिव्रत, सीस गोबिंदहि बेंन मिष्ट सुख देन, जगत चित हरन करुरगा के बड़ ढेर, दया उपगार संत चरन रज ध्यान, काय मन बच क्रम येकी । बिबेकी । Jain Educationa International [ २२३ For Personal and Private Use Only लीयौ ॥४७३ बिसद ॥ राजी । बाजी । संतोषी । पोखी । www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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