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राघवदास कृत भक्तमाल लात धरी कहि नांहि सुनी हम, आप कहौ वह पांवहि हासे। रोकि दियौ वह कांपि उठ्यौ सुनि, भाव भयौ उर सौ दुख नासे ॥६०८ मानस भेजि बुलावत ताछिन, पावत पाइ लगे नृप भीजे। साहिब कौं तिस जा जल पावहु, नांहि पिवै अनिवै तुम रीझे। ल्यौ दस गांव रहौं तुम पायन, नांहि गहौं द्रिबि राखत छीजे । साथि चिराक दई पहुचावत, नीर पिवावत है प्रभु धीजे ॥६०६
मूल राघो तन करि दूबलौ, भक्ति भाव मोटो महा ॥ परंपरा सिख गरू, छोड़ौँ बिदत बतायो। मांही बारै नृमल, कलू कालौ नहीं लायौ । सुंदर सहज सुसील, गिरा मृखा न सुहाई।
साध संग मैं जाइ, कीरतन कथा कराई। कहरणी सं चालै नहीं, जा जन की महिमां कहा। राघो तन करि दूबलौ, भक्ति भाव मोटो महा ॥४७० संतन की सेवा लीयें, जित तित भक्त बिराजहीं॥
पदमबेरछ रहै भट, स्याव देवकल्याणं । हरिनारांइन भूप, चिग बोहिथ बर मांन । गांव सुहैले रामदास, तुलसीजू भेलै ।
सहर हुसंगाबाद अड़ि, उधव झड़ झेले । प्रमानंद वोली बिचै, ध्वजा धरम की साजहीं। संतन की सेवा लीयें, जित तित भक्त बिराजहीं ॥४७१ कीयो भजन साधन सबल, अबला तन इन बाईइन ॥
१बीरां रहीरांमन्य ३धनां, ४लक्ष दमां प्रगट जग। ५केसी खीचनी रामबाई, लाली चाली मग। नीरां हजमनां रैदासनि, १०गंगा पुनि ११जेवा। संत उपासनि १२गोमती, उभै १३पारबती सेवा । १४बादर १५रांनी कुवरराय, यूं जांनौं १६हरखां जोइसिन । कीयो भजन साधन सबल, अबला तन इन बाईइन ॥४७२ साध दया उर धारि प्रभु, कान्हर-जन लाही लीयौ ॥
लख्यौ भजन मग सत्य, जब गुर सरनै पायौ । साच भूठि पहिचांनि, जगत ध्रम दूरि उड़ायौ।
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