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राघवदास कृत भक्तमाल जाइ मिले बपु छाडि र भावहि, लेत अनंत सुखै तन वारी। साच दिखाइ दई हित रीतिह, प्लेमिन कौं। अति लागत प्यारी ॥६०२ .
मूल छप गंग ग्वाल गहरौ अधिक, सखा स्यांम चित भांवतौ ॥
राधेजी की सखी हुती, वह संज्ञा पाई। बृज के गांम रु ग्वाल, गाइ भिन भिन्न सुहाई। स्यांम केलि आनंद, उदिध हिरदा मैं धारी।
मगन रहे रस मांहि, झूठ बांरगी न उचारी। चाहत बृज बृजनाथ गुर, संत चरन सिर नांवतौ । गंग ग्वाल गहरौ अधिक, सखा स्यांम चित भांवतौ ॥४६६
टोका इंदव पात भयो पतिस्याह महाबन, सारंग राग सुनौं हठ ल्याये । छद संग सु बल्लभ रंग बन्यौ अति, मात करे जल नैन बहाये ।
हाथ ह जोरि कहै चलिये' मम, जीवत है बृजभूमि सुनाये। संग लगे हठ जात दिली छुट, वावत तूवर आई समाये ॥६०३
मूल ___ यह लोक प्रलोक सुख, लालदास दोऊ लह्या ॥टे०
उर' प्राकर प्रभु सुजस, प्रीति साधन सूं निति प्रति । जगत कुवल सम बस्यौ, लहरि लालच हू निरबृति । प्रीक्षत ज्यं बपु मुच्यौ, बघेरै मांहि बनती। बोंद बन्यौ भजि राम, संत समूह जैनैती। हरख भयो हरखापुरै, गुण गाया त्यूं गुर कया। इहलोक परलोक सुख, लालदास दोऊ लह्या ॥४६७ संतन सेवा कारनै, यहु तन माधव ग्वाल को ॥
अहनिसि करै उपाव, साध जा बिधि ह परसन । स्यांम स्वांग तें हेत, दास को चाहै दरसन । बरत पर उपगार, और प्रासा नहीं मन मै । प्रेमा मगन महंत, गाइ है गुन-गन जन मै।
१. कहो चिलये।
टि टि.
=खान । भगवान् ।
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