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चतुरदास कृत टीका सहित
[ २१९ 'जाइ परयौ पगि रोइ कही पित, नांक कट्यौ मुख काहि दिखावें। चालि बसो घर हास मिटावहु, सासर जामति सेब करावै । ब्याघ र सिंघ हत्तै बन मै डर, मात मरै तव जाइ जिवावे । साच कही बिन भक्ति इसौं तन, ल्या इतही मिलिकै हरि ग वै ।।५६५ नांक कट्यौ कहि होइ कट किन, भक्ति सु नांक तिहूं पुर गायो। खोत पचास बरस्स बिर्ष लगि, त्यागत नाहि चबेहि चबायो । भोगन मैं नहि सार पदारथ, कोम तजौं भजि स्यांम सुहायौ । अांख खुली तम जात भयों सुनि, देत सरूप सु लै घरि आयौ ।।५६६ धांम बरयौ निसि लाल धरे रसि, राखि भलै चित टैल कराई। जात नहीं कहु नांहि मिलै किन, पूछत भूप कहां दिज भाई। काहु कही घर में प्रभु सेवत, भूप भयो खुसी सुद्धि मंगाई। जाइ कह्यौ नप देत असीसहि, कैतहि भूप चल्यौ घर जाइ ।।६०० प्रीति लखी नृप पूछत कत्त सु. नीर बहै द्रिय स्यांम पगी है। जात भयो नृप ल्याउ इहां उन, पात हमै अति चाहि लगी है। तीर खड़ो जमुना-जल नैननि, राय लखी रति बौ उमगी है। लाख बिसां बरज्यो नृप चा अति, कोन कुटी घरि प्रात जगी है ॥६०१
मूल कृष्ण रूप गुन कथन कू, खरगसेन नृमल गिरा ॥
बड़ी भक्ति तन मध्य, बरनई दान केलिका। तात मात सुत भ्रात, नाम कहि गोपि ग्वालिका । मोहन मित बिहार, रंग रस मैं मन दीन्हौं । चित्रगुपत के बंस, बिदत यह लाहा लीन्हौं । स्मृति गौतमी नि उर, रास मांहि बपु तजि फिरा। कृष्ण रूप गुन कथन कौ, खरगसेन नृमल गिरा ५४६५
टीका इंदव रास करावत ग्वालिर बासहि, पुंनिम सर्द लग्यौ रस भारी। छंद पाप चलाबनि भाव दिखावनि, थेइ करावन जोरि निहारी।
भगवान मद्राण ग्वाल गरेप के है है माराजजा ।(?)
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