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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ २०७ कीये कबित षटपदी, बहुत की संख्या ल्याही। प्रिथी कोड़ी पचास, जीव चौरासी गांही। उत्म मध्य कनिष्ट द्रुम, राघो मधुमखि ज्यूं लीयो । ततबेता तिहूंलोक को, ततसार संग्रह कोयौ ॥४४६ ततबेता के सिषन नै, दोऊ देस चिताइयो । रांम दमोदरदास, धांम' थौलाई कीन्हों। प्रांबावति के भूप, तास कौं परचौ दीन्हीं। रांमदास बड़ महंत, जैतारणि मुरधरं मांहीं। ऊदावत सिष करे, दुनी सुभ मारग लांहीं। . राघो भक्ति करी इसी, तातै हरि मन भाइया। ततबेता के सिषन नै, दोऊ देस चिताइया ॥४४७ जगंनाथ जगदीस की, अनन्य भक्ति राखी हिदै ॥टे. निरबेद ग्यांन में निपुन, नांब सर्बोपर जांण्यो। जप तप साधन सकल, भजन बिन तुछ बखांण्यौं। छप कबित सूं हेत, तिना मै संख्या प्रांगी। मनुख देह के स्वास, गणे अक्षर पौरांगी। अवर चीज नौखां घरणी, राघो हरी भाखे त्रिदै । जगनाथ जगदीस की, अनन्य भक्ति राखी ह्रिदै ॥४४८ राघो सिरजनहार सौं, कोयौ मलूक सलूक सति ॥ क्षत्रीकुल उतपत्ति,, बसे मारिणकपुर माहीं। श्रगुनी निरगुनी भक्त, काहू सूं अंतर नांहीं। हींदू तुरक समान, येक ही प्रात्म देखें। तन मन धन सबंस, भक्त भगवत कै लेखे। साहिब सांई राम हरि, नहीं विषमता नाम प्रति । राघो सिरजनहार सूं, कीयौ मलूक सलूक सति ॥४४६ राघव जो रत राम सू, सो मम मस्तक-मंडनं ॥ इम मांनदास मो मगन, कीयौ प्रति कृतनयौ है। जपि नैन्हादास निसि-दिवस, गिरा को पुंज भयौ है। १. संतधाम । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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