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२०६ ]
राघवदास कृत भक्तमाल
छपै
मनहर छंद
सौभावतो को मूल मन वच क्रम सोभावती, संतन कौं सर्वस दयौ ॥
गुपत कसोटी करी, कहि न काहू सूं भाखी । हरि जागराइ जगदीस, पैज परमेस्वर राखी। अन-पाणी बखादि, बस्त जो चहै जरेरौ । इक रांणी के घटि प्रगटि, रामजी रिजक परेरचौ । जन राघो रुचि अंतक समैं, जो बांछित ही सो भयो । मन बच क्रम सोभावती, संतन कौं सर्बस दयौ ॥४४३ __ थरोली मैं जगनाथ स्यांमदास दत्त वास,
___ . कान्हड़जु चाटसू मैं नीकै हरि ध्याये हैं। प्रांनदास दास-लिवाली मोहन देवपुर,
सेरपुर तुरसीजु बांरणी नीकै ल्याये हैं। पूरण भंभोर रहे खेमदास सिव-हाड़,
टोडा मधि' प्रादिनाथजू परम पद पाये हैं। ध्यांनदास म्हारि भये डीडवाणे हरिदास,
दास जगजीवन सु भादवै लुभाये हैं ॥४४४ द्वादश निरंजन्यां के नाम गांम गाये हैं।
इति निरंजनी पंथ
माधौ कांणो को मूल माधौ कांणी मगन है, मन बच क्रम हरि ध्याइयो । पांवन कीयौ टौंक, प्रभु की भक्ति बधाई। प्रासा बंध सु डरत, तहां इक बाई आई। देवा कौं प्रास्वास, हमारौ नांव कहीज्यौ । प्रभ न जाई होइ, भजन मैं गारकर रहीज्यौ। राघो खर चढ़ि पुर गयो, परचौ परगट दिखाइयो। माधौ कारणी मगन द्वै, मन बच क्रम हरि ध्याइयौ ॥४४५ ततबेता तिलोक · को, ततसार संग्रह कीयौ ॥ पंडित प्रम प्रवीण, सुति सुम्रित पौरांनन । भारतादि पुनि और ग्रंथ, सब कथत सु प्रांनन ।
१. मधिनाथ।
२. गरक ।
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