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________________ चतुरदास कृत टीका सहित मनहर चंद मनहर चंद [ २०३ स्वांमदास की मूंठि, मंडी निरगुरण सूं न्यारी । सिष उपजे सिरदार, भक्ति रसि श्राई भारी । ये पचवारै प्रसिधि भये, बड़े महंत दिगपाल द्वै' । राघो रहरिण सराहिये, सुबित सिरोमनि दिपत वै ॥ ४३१ आनंदास अनन्य प्रतीत श्ररि इंद्रीजित, पायौ बित प्रगट प्रकास्यौं हिरदा मैं हरि । पांच तत तीन-गुरण येक रस कीये जिन २, नृगुन उपास्यौ निराकार निहि क्रम करि । निरबृति सूं नेह धरि देह से पारी टेक, बाह्यौ बैराग व्रत जीवत जनम भरि । राघो कहै भयौ बर उर ऊंकार करि, मनहर हरि हरि करत हजुरी भयौ पास कौ ॥ ४३३ कान्हड़दास को मूल इंदव कान्हड़दास कला लीयें प्रतरचौ, पंथ निरंजन के पग धारे । छंद मांग भिक्षा र कयौ भक्ष भोजन से प्रतीत हूँ स्वाद निवारे । मांनि घरणी पै मढी न बधाई जू, जांनि तजे क्रम बंधन सारे । राघो कहै भजि रांम भलो बिधि, संगति के सबही निसतारे ॥ ४३४ त्रिगुणी गयौ है तिरि श्रादि अबिगति घरि ॥ ४३२ स्यांमदास को मूल सूरबीर महाधीर दिपत हिदा मैं हीर, ब्रिकत बंराग मैं सुभाव स्यांमदास कौ । ऊंची दिसा रहरिण कहरिण ऊंची ऊंचौ मन, गह्यौ मत मगन ह्वे अगम प्रकास कौ । रटत रंकार बारंबार रत रोम रोम, धारयौ जगि जोग यौं निरोध सासै-सास कौ । राघो कहै रांम कांम स्यप्यौ तन धन धोम, Jain Educationa International छंद १. है । २. उन । पूरणदासजी को मूल पूरण प्रसिधि भयो पिंड ब्रह्मंड खोजि, कल मैं कबीर धीर धारचौ गुरम सत कौ । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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