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________________ २०४ ] राघवदास कृत भक्तमाल गहत अरुढ़ मत प्रात्मा परूढ़ भई, जीती पर कीरति प्रकास भयौ बस्त को। मन तज्यौ गवन पवन अस्थिर भयो, भरम करम भाजे वै के हाथ दस्त को। राघो कहै राम आठौं जांम जपि जीति गयौ, होतो अंस प्रागिलौ दधीच मुनि अस्त कौ ॥४३५ मनहर छंद हरीदास को मूल . जत सत रहिरिण कहिरिण करतूति बड़ौ, हर ज्यूं-क हर हरिदास हरि गायौ है । विकत बैरागी अनरागो लिव लागी रहै,। अरस परस चित चेतन सूं लायौ है। नृमल नृबांणी निराकार को उपासवान नृगुण उपासि के निरंजनी कहायौ है। . राघो कहै राम जपि गगन मगन भयौ, __ मन बच क्रम करतार यौँ रिझायौ है ॥४३६१ तुरसीदासजी को मूल इंदव सीतल नैन चवै बिग बैन, महा मन जीत अतीत करारौ । छंद माया को त्याग नहीं अन राग, भिक्षा भिक्ष भोजन सांझ सवारौ। ब्रह्म जग्यासी अभ्यासी है नांव को, जोग जुगत्ति सबै बुधि सारौ। राघो कहै करणी जित सोभित, देखौ हौ दास तुरसी को अखारौ ॥४३७ fसो' प्रति का अतिरिक्त छप प्रथम पीपली प्रसिद्धि, सिला नागौर बिसेखो । नयो गयद अजमेर फनिंग, टोडे परिण पैखौ। गिर सू गागरि गिरी, नीर राख्यो घट सारौ । देवी को सिष करी, ज्यायो विष बित्र उधारी । सिष प्रचो प्रांबेर, राव राजा सब जाणें । अगंग बिप्र पंथ चल्यो, साह सुत जीयो सिधारण । सिर परि कर प्रियागदास को, गोरखनाथ को मत लयो । बन हरीदास निरंजनी, ठौर और परचो दीयो ।।४२६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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