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________________ २०२ ] छपै मनहर छंद छपै तोरे हैं कुबांरग तीर चांगक दीयो सरीर, दादूजी दयाल गुर अंतर उदीत्यों है। राघो रत राति-दिन देह दिल मालिक सूं, अथ निरंजनों पंथ बरनन अब राखहि भाव कबीर कौ, इम येते महंत निरंजनी ॥ लपट्यो जू जगनाथ स्स्यांम ३कान्हड़ ४अनरागी । ध्यानदास रु ६ खेमनाथ, ७जगजीवन त्यागी । चतुरसी पायौं तत, हांन सो भयो उदासा । १०पूरण ११ मोहनदास जांनि १२हरिदास निरासा । राघो संम्रथ रांम भजि, माया अंजन भंजनों । अब राखहि भाव कबीर कौ, इम येते महंत निरंजनी ॥४२६ लपट्यौ जगनाथदास स्यांमदास कान्हड़दास, भयै भजनीक प्रति भिक्षा मांगी पाई हैं । पूरण प्रा. धि भयो हरिदास हरि रत, तुरसीदास पाय तत नीकी बनि आई है । ध्यानदास-नाथ' अरु श्रानंदास रांम कह्यौ, राघवदास कृत भक्तमाल वालिक सूं खेल्यौ जैसे खेल सी त्यो है ॥४२८ नृगुरण निराट बृति राघो मनि भाई है ॥४३० जगनाथजी लपटया की टीका इंदव नेम निरंतर नांव सूनि ग्रह, यौं तरली तन मांझ उठी हैं । छंद भाड़ौ दियौ भक्षि प्रात्म को गछि, पांनी मैं चुन ले घेरचौ मुठी है । स्वाद न साल न दूध न पालन, संजम कूं सिरदार हठीं है । राघो सगाई सिरोमनि ब्रह्म सौर, यीं जग मैं जगनाथ सठी है ।। ५५२ १. ध्यानदास । Jain Educationa International जग सूं उदास हैं के स्वासोश्वास लाई है । जगजीवन खेमदास मोहन हिदे प्रकास, राघो रहरिण सराहिये, सुबित सिरोमनि दिपत वें । आनंदास सत सूर, सदन तजि के हरि परसे । मन बच क्रम भजनीक, दास मोहन सिष सर से । २. सं । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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