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________________ २०० ] राघवदास कृत भक्तमाल उदधितनय बाहन सुनौं, तास सम तुल्य बखांनिये । यौं सुंदर सदगुर गुण अकथ, कथत पार नहीं जानिये ॥४२४ बुधि विबेक चातुरी, ग्यांन मुरगमि मरवाई । क्षमा सील सत्य, सुहद संतन सुखदाई। गाहा गोत कबित, छंद पिंगुल प्रवांने। सुंदर सौं सब सुगम, काव्य कोइ कला न छांन । बिद्या सु चतुरदस नाद निधि, भक्तिवंत भगवंत रत । संयम जु समर पुरणगरण अमर, राज-रिद्धि नव-निद्धि यत ॥४२५ देवन मै ज्यु विष्ण, कृष्ण अवतारन कहये। जंग मांहि गंग'-पुत्र, गंग मै तीरथ मै लहिये । रिखन मांहि नारद, जखिन कुमेर भंडारी। __ जती कपी हनुमंत, सती हरिचंद विचारी। नागन मैं श्रीसेसजी, बागन सारद मांनियो । दादूजी के सिषन मै, यौं सुंदर बूसर जांनियौं ॥४२६ तारन मै ज्यूं चंद, इंद देवन मै सोहै । नरन मांहि नरपत्ति, सत्ति हरिचंद स जोहै। भगतन मै ध्र वदास, तास सम और स थोरे । दांनिन मै बलि बरनि, सरनि सम सिवर न औरे । जगत भगत बिक्षात वै, चातुरजन असे कही। सब कबियन सिरताज है, दादू सिष सुंदर मही ॥४२७ टीका स्वामी श्रीसुंदरजी बांणी यह रसाल करी, भगत जगत बांचे सुण सब प्रीति सौं। साखी पर सबद सवइया बांग जोग, ग्यांन को सुमुद्र पंच इंद्रिया उ जीति सौं । सुखहु समाधि स्वप्न बोध बेद को बिचार, उकत अनूप अदभुत ग्रंथ नीति सौं। पंच परभाव मुर संप्रदाइ उतिपति, निसांनी गुरू की महिमां बांक्नी सु रीति सौं ।।५४८८ मनहर छंद १. शिव। Jain Educationa International www.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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