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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ १९९ बैसिकुल जनम बिचित्र बिग बारणी जाकी, राघो कहे गृथन के अर्थन को भान है ॥४२० दिवसाहै नन चोखा बूसर है साहूकार, - सुंदर जनम लीयौ ताही घरी प्राइ के। पुत्र को चाहि पति दई है जनाइ तृया, कह्यौ समझाइ स्वामी कहौ सुखदाइ कैं। स्वामी मुख कही सुत जनमैगो सही पै, बैराग लेगो वही घर रहै नहीं माइ कैं। ऐकादस बरष मै त्याग्यौ घर माल सब, बेदांत पुरांन सुने बानरसी जाइ के ॥४२१ प्रायो है नबाब फतेपुर मै लग्यो है पाइ, अजमति देहु तुम गुसंई (यां) रिझायौ है । पलौ जौ दुलीचा को उठाइ करि देख्यौ तब, फतैपुर बसै नीचे प्रगट दिखायौ है। येक नीचे सर येक नीचे लसकर बड़, येक नीचे गैर बन देखि भय प्रायौ है। राघो घोरे रथि' लीये दबते नबाब केर२, ____ सुंदर ग्यांनी को कोई पार नहीं पायो है ॥४२२ अन्यात सतगुर सुंदरदास, जगत मै पर उपगारी। धनि धनि अवतार, धन्नि सब कला तुम्हारी। सदा येक रस रहे, दुख्य द्वंद-र को नांहीं। उत्म गुन सो प्राहि, सकल दीस तन माहीं। सांखिजोग अरु भक्ति, पुनि सबद ब्रह्म संजुक्ति है। कहि बालकरांम बबेक, निधि देखे जीवन मुक्ति है ॥४२३ जल सुत प्रीत्म जांनि, तास सम प्रम प्रकासा । अहि रिप स्वामी मध्य, कीयो जिनि निश्चल बासा । गिरजापति ता तिलक, तास सम सीतल जां । हंस भखन तिस पिता, तेम गंभीर सु मानूं । छपै १. राखि। २. के न। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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